ग्राम समाचार,भागलपुर। बिहार बाल आवाज मंच और परिधि द्वारा राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर गोष्ठी का आयोजन बड़ी जमीन गोराडीह में शुक्रवार को किया गया। गोष्ठी का विषय था- "बिहार में बालिका शिक्षा की स्थिति"। इस अवसर पर संचालन करते हुए जयनारायण ने कहा कि देश और समाज के विकास का एक मापदंड उसकी शिक्षा होती है। जो जितना शिक्षित होगा वह उतना ही अधिक विकसित होगा। शिक्षा हमेशा से एक ऐसा औजार रहा है जिसे कोई छीन नहीं सकता।
शिक्षा के ही बल पर बाबासाहेब डा भीमराव अंबेडकर ने सामाजिक मान्यताओं को तोड़ते हुए देश में मिसाल कायम की। उन्होंने कहा था शिक्षित बनो संगठित हो। सरकार और समाज द्वारा शिक्षा हेतु लगातार प्रयास के बावजूद हमारे समाज में बेटियों की शिक्षा का स्तर बहुत नहीं बढ़ पा रहा। स्त्री शिक्षा के मामले में बिहार और भी पिछड़ रहा है। हालांकि राज्य सरकार के कुछ प्रयासों से स्कूल जाने वाली लड़कियों की संख्या बढ़ी है परंतु शिक्षा की गुणवत्ता बहुत ही निम्न स्तर पर है। आधी आबादी यानि महिलाओं की शिक्षा के बिना समाज नहीं बढ़ सकता। मनजीत कुमार ने अपनी बात रखते हुए कहां की हम लगातार लड़कियों को आगे बढ़ाने हेतु प्रयासरत हैं परंतु हमारे समाज की मान्यताएं इन्हें आगे बढ़ने से रोकती हैं। आम लोग आज भी बेटी को पराया धन ही मानते हैं। यही कारण है कि बेटियों की उच्च शिक्षा पर मुश्किल से 1% लोग ही ध्यान देते हैं। अगर बेटों की तरह बेटियों को भी पढ़ने का अवसर मिलने लगे तो हमारा समाज दुगुने रफ्तार से आगे बढ़ेगा। आज भी मध्य विद्यालय और फिर उच्च विद्यालय में सबसे अधिक ड्रॉपआउट लड़कियों का ही होता है। हाई स्कूल शिक्षा आते-आते अक्सर लड़कियों की शादी कर दी जाती है और उसे एक बड़ी जिम्मेदारीमें धकेल दिया जाता है। भोला कुमार ने अपनी बात रखते हुए ध्यान दिलाया कि बेटों के पढ़ाई के लिए सभी चिंतित रहते हैं पर वहीं अगर वे अपने बेटियों को पढ़ाने में ध्यान दें तो भविष्य में उन्हें बच्चे की पढ़ाई की चिंता से मुक्ति मिल जाएगी। आगे वक्ताओं ने बालिका शिक्षा के लिए पुरुष सत्तात्मक विचार को भी दोषी ठहराया और यह आह्वान किया कि इस विचार को खत्म करना है ताकि हम बेटा और बेटियों को बराबर समझ सकें। इस अवसर पर राकेश कुमार, भोला कुमार जीवन, भारती कुमारी, बिंदू कुमारी, अर्चना, सूरज कुमार, चंद्रशेखर आजाद, भुनेश्वर कुमार, आरती कुमारी, डेजी कुमारी आदि मौजूद थे।
बिजय शंकर, ग्राम समाचार, भागलपुर
शिक्षा के ही बल पर बाबासाहेब डा भीमराव अंबेडकर ने सामाजिक मान्यताओं को तोड़ते हुए देश में मिसाल कायम की। उन्होंने कहा था शिक्षित बनो संगठित हो। सरकार और समाज द्वारा शिक्षा हेतु लगातार प्रयास के बावजूद हमारे समाज में बेटियों की शिक्षा का स्तर बहुत नहीं बढ़ पा रहा। स्त्री शिक्षा के मामले में बिहार और भी पिछड़ रहा है। हालांकि राज्य सरकार के कुछ प्रयासों से स्कूल जाने वाली लड़कियों की संख्या बढ़ी है परंतु शिक्षा की गुणवत्ता बहुत ही निम्न स्तर पर है। आधी आबादी यानि महिलाओं की शिक्षा के बिना समाज नहीं बढ़ सकता। मनजीत कुमार ने अपनी बात रखते हुए कहां की हम लगातार लड़कियों को आगे बढ़ाने हेतु प्रयासरत हैं परंतु हमारे समाज की मान्यताएं इन्हें आगे बढ़ने से रोकती हैं। आम लोग आज भी बेटी को पराया धन ही मानते हैं। यही कारण है कि बेटियों की उच्च शिक्षा पर मुश्किल से 1% लोग ही ध्यान देते हैं। अगर बेटों की तरह बेटियों को भी पढ़ने का अवसर मिलने लगे तो हमारा समाज दुगुने रफ्तार से आगे बढ़ेगा। आज भी मध्य विद्यालय और फिर उच्च विद्यालय में सबसे अधिक ड्रॉपआउट लड़कियों का ही होता है। हाई स्कूल शिक्षा आते-आते अक्सर लड़कियों की शादी कर दी जाती है और उसे एक बड़ी जिम्मेदारीमें धकेल दिया जाता है। भोला कुमार ने अपनी बात रखते हुए ध्यान दिलाया कि बेटों के पढ़ाई के लिए सभी चिंतित रहते हैं पर वहीं अगर वे अपने बेटियों को पढ़ाने में ध्यान दें तो भविष्य में उन्हें बच्चे की पढ़ाई की चिंता से मुक्ति मिल जाएगी। आगे वक्ताओं ने बालिका शिक्षा के लिए पुरुष सत्तात्मक विचार को भी दोषी ठहराया और यह आह्वान किया कि इस विचार को खत्म करना है ताकि हम बेटा और बेटियों को बराबर समझ सकें। इस अवसर पर राकेश कुमार, भोला कुमार जीवन, भारती कुमारी, बिंदू कुमारी, अर्चना, सूरज कुमार, चंद्रशेखर आजाद, भुनेश्वर कुमार, आरती कुमारी, डेजी कुमारी आदि मौजूद थे।
बिजय शंकर, ग्राम समाचार, भागलपुर
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