ग्राम समाचार, भागलपुर। विश्व नदी दिवस को लेकर रविवार को सीढ़ी घाट और बरारी के गंगा तट पर परिधि और एक्शन एड के संयुक्त तत्वावधान में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर जल संवाद, गीत एवं नदी व गंगा बचाने का संकल्प हुआ। जल संवाद में परिधि के निदेशक उदय ने कहा कि नदियां धरती की नस और धमनी हैं। नदी मरेगी तो धरती भी मर जायगी। नदियों में केवल पानी का ही प्रवाह नहीं होता बल्कि नदियां सभ्यता और संस्कृति की भी वाहक हैं। गंगा सहित तमाम नदियां तंग तबाह और बर्बाद हो रही हैं। बांध, बराज और प्रदूषण नदियों के तीन बड़े दुश्मन हैं। बहते हुए जल स्रोत का नाम ही नदी है। नदी रुक गई तो नदी मर गई, नदी का गुण समाप्त हो गया। गांव घर में कहावत है बहता पानी निर्मल। नदियों पर डैम बनाकर नदियों को नष्ट किया जा रहा है। नदियां प्रकृति निर्मित जल स्रोत हैं। इसे मनुष्य ने नहीं बनाया लेकिन मनुष्य नदियों में छेड़छाड़ अवश्य कर रहा है। नदियां बड़े बड़े कारोबारियों और कॉरपोरेट के हवस का शिकार हुई हैं। आम लोगों ने नदियों का ज्यादा नहीं बिगाड़ा है। बड़े पूंजीपति तो नदियां खरीदने के लिए भी मैदान में उतर गये हैं। आधुनिक खेती जिसमें अंधाधुंध कीटनाशक और रासायनिक खाद का इस्तेमाल होने से भी नदी बर्बाद हुई है। नदियां दो तरह की होती हैं एक जिसमें सालों भर पानी रहती है सदानीरा और दूसरा बरसाती। नदियां जल निकासी का रास्ता भी है। इस अवसर पर परिधि के कार्यकर्ताओं ने स्लोगन लिखी तख्तियों के माध्यम से भी अपनी बातें आकर्षक तरीके से कही। ललन, लाडली, दीप प्रिया, गंगेश, जय नारायण, दुर्गा, राहुल, अभिजीत शंकर, मनोज, नीरज, कृष्णानन्द, सार्थक भरत आदि ने उदय और ललन रचित गीत "सब मिलके आओ रे आओ झुंड बांधकर आओ रे आओ जंगल धरती नदी बचाओ" जंगल हमारा है धरती हमारी है, नदिया हम सब की है जान, राजा ओ रानी आये कहां से लेने को हम से लगान" मैं नदिया अलबेली बहती जाऊं कलकल छलछल" और "गंगा स खेत जंगल गंगा स छय जीवन" गाया। तख्तियों पर लिखे ये नारे लोगों को आकर्षित कर रहे थे। "जब बने बांध बराज नदियां हुई हैं नाराज" "गंगा होवे नित दिन मैली करखनिया की भरती थैली" "नदियों में घोले जहर कारखाने और शहर" "निर्मल गंगा अविरल गंगा" "बांध बराज व प्रदूषण" ये हैं नदियों के दुश्मन" "जल जंगल और जमीन ये हो समुदाय के अधीन"। अंत मे उपस्थित सभी लोगों ने गंगा और नदियों को बचाने का सामूहिक संकल्प लिया। इस मौके पर एकराम हुसैन साद, सुनील मंडल, चंदा देवी, संतोष कुमार, ज्ञानरंज कुमार, अपरेन्द्र, रवि, अभिषेक आदि मौजूद थे।
Bhagalpur News:विश्व नदी दिवस को लेकर जलसंवाद, नदियों को बचाने का लिया सामूहिक संकल्प
ग्राम समाचार, भागलपुर। विश्व नदी दिवस को लेकर रविवार को सीढ़ी घाट और बरारी के गंगा तट पर परिधि और एक्शन एड के संयुक्त तत्वावधान में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर जल संवाद, गीत एवं नदी व गंगा बचाने का संकल्प हुआ। जल संवाद में परिधि के निदेशक उदय ने कहा कि नदियां धरती की नस और धमनी हैं। नदी मरेगी तो धरती भी मर जायगी। नदियों में केवल पानी का ही प्रवाह नहीं होता बल्कि नदियां सभ्यता और संस्कृति की भी वाहक हैं। गंगा सहित तमाम नदियां तंग तबाह और बर्बाद हो रही हैं। बांध, बराज और प्रदूषण नदियों के तीन बड़े दुश्मन हैं। बहते हुए जल स्रोत का नाम ही नदी है। नदी रुक गई तो नदी मर गई, नदी का गुण समाप्त हो गया। गांव घर में कहावत है बहता पानी निर्मल। नदियों पर डैम बनाकर नदियों को नष्ट किया जा रहा है। नदियां प्रकृति निर्मित जल स्रोत हैं। इसे मनुष्य ने नहीं बनाया लेकिन मनुष्य नदियों में छेड़छाड़ अवश्य कर रहा है। नदियां बड़े बड़े कारोबारियों और कॉरपोरेट के हवस का शिकार हुई हैं। आम लोगों ने नदियों का ज्यादा नहीं बिगाड़ा है। बड़े पूंजीपति तो नदियां खरीदने के लिए भी मैदान में उतर गये हैं। आधुनिक खेती जिसमें अंधाधुंध कीटनाशक और रासायनिक खाद का इस्तेमाल होने से भी नदी बर्बाद हुई है। नदियां दो तरह की होती हैं एक जिसमें सालों भर पानी रहती है सदानीरा और दूसरा बरसाती। नदियां जल निकासी का रास्ता भी है। इस अवसर पर परिधि के कार्यकर्ताओं ने स्लोगन लिखी तख्तियों के माध्यम से भी अपनी बातें आकर्षक तरीके से कही। ललन, लाडली, दीप प्रिया, गंगेश, जय नारायण, दुर्गा, राहुल, अभिजीत शंकर, मनोज, नीरज, कृष्णानन्द, सार्थक भरत आदि ने उदय और ललन रचित गीत "सब मिलके आओ रे आओ झुंड बांधकर आओ रे आओ जंगल धरती नदी बचाओ" जंगल हमारा है धरती हमारी है, नदिया हम सब की है जान, राजा ओ रानी आये कहां से लेने को हम से लगान" मैं नदिया अलबेली बहती जाऊं कलकल छलछल" और "गंगा स खेत जंगल गंगा स छय जीवन" गाया। तख्तियों पर लिखे ये नारे लोगों को आकर्षित कर रहे थे। "जब बने बांध बराज नदियां हुई हैं नाराज" "गंगा होवे नित दिन मैली करखनिया की भरती थैली" "नदियों में घोले जहर कारखाने और शहर" "निर्मल गंगा अविरल गंगा" "बांध बराज व प्रदूषण" ये हैं नदियों के दुश्मन" "जल जंगल और जमीन ये हो समुदाय के अधीन"। अंत मे उपस्थित सभी लोगों ने गंगा और नदियों को बचाने का सामूहिक संकल्प लिया। इस मौके पर एकराम हुसैन साद, सुनील मंडल, चंदा देवी, संतोष कुमार, ज्ञानरंज कुमार, अपरेन्द्र, रवि, अभिषेक आदि मौजूद थे।
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