ग्राम समाचार, बौंसी, बांका। लोक आस्था का महापर्व छठ का आज तीसरा दिन यानी पहली अर्घ्य (संध्याकालीन) पूरे प्रखंड में बड़े धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। वही प्रखंड में बहुत से लोगों ने घर में ही छठ पर्व का प्रथम अर्घ्य दिया।
लोगों में काफी उत्साह देखी गई। साथ ही घाट पर भी लोगों की भीड़ थी, पर नजारा ऐसा था कि मानो हमारे बीच से करोना महामारी गायब हो गई है। जब दुनिया करोना की आपदा से जूझ रही है। तब छठ पूजा का आयोजन हमें नई ऊर्जा के साथ प्रेरित कर रहा है। आज डूबते सूर्य को अर्घ देने का दिन है। सूरज हमारी पीड़ा का अंत करें तो कोई आश्चर्य नहीं। बहुतों को याद होगा कि करोना जब पिछली सर्दियों के समय फैलना शुरू हुआ था, तब भारत जैसे सूर्य की कृपा के पात्र देश में यह उम्मीद की गई थी कि, जैसे-जैसे ताप बढ़ेगा करोना के मामलों में भी कमी आएगी। यह अनायास ही है कि हम इंसान सूर्य से बहुत आस लगाते हैं। सूर्य हमें सब कुछ देता है, तो सूरज हमें रोग प्रतिरोधक क्षमता दे। हमें महामारी से निजात दिलाएं। सूर्य के ताप का लोहा केवल अध्यात्म जगत ही नहीं बल्कि स्वयं विज्ञान और चिकित्सक भी मानते हैं। सूर्य की उपासना का यह पावन पर्व अगर आज दुनिया के कोने कोने में अपनी पूरी व्यवहारिकता के साथ पहुंच गया है। तो इसके पीछे कहीं ना कहीं सूरज की अपार महिमा है। बेशक करोना के साए में इस बार छठ अलग और यादगार है।
बौसी प्रखंड में ज्यादातर लोग अपने घरों में ही सूर्य को अर्घ्य देंगे। कहीं अदालत का असर है, तो कहीं स्थानीय प्रशासन और कहीं लोग स्वयं जागरूक होकर अकेले ही छठ मना रहे हैं। इस बार घाट सुना ही रह जाए तो अच्छा है। जब किसी शादी में 50 लोग एकत्र नहीं हो सकते, तो फिर छठ घाटों पर हजारों लोगों की भीड़ जुटाने का कोई अर्थ नहीं वैसे भी सूर्य और व्यक्ति का संबंध सीधा है। इसमें समाज या समुदाय की भूमिका नगण्य है। किसी पंडित पंडे की भी जरूरत इस व्रत में नहीं है, तो व्रतियों को और भी सुविधा हो जाती है। छठ में मूल रूप से आरोग्य की ही कामना की जाती है। अतः हम छठ आयोजन के किसी भी चरण में सेहत से जुड़ी किसी सावधानी की अवहेलना नहीं कर सकते। लंबे उपवास से अशक्त व्रतियों की चिंता करना, उन सभी की जिम्मेदारी है जो छठ का पूर्ण लाभ लेना चाहते हैं। कुछ इलाकों में लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता थोड़ी अच्छी है क्योंकि वह थोड़े अच्छे परिवेश में रहते हैं। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वे आए दिन अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को चुनौती दें। अनलॉक होते देश में जो रियायत दी गई है। वह रोजी रोटी और अर्थव्यवस्था की रक्षा के लिए है। अनलॉक होने का अर्थ यह कतई नहीं कि हम लापरवाह हो जाएं और अपने व्रत उत्सव बिगाड़ने, शुद्धता, पवित्रता प्रकृति के प्रति श्रद्धा की मिसाल यह छठ व्रत वास्तव में एक अवसर है कि हम अपनी और अपने परिवार समाज की सुरक्षा सुनिश्चित करें।
कुमार चंदन,ग्राम समाचार संवाददाता, बौंसी।
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