ग्राम समाचार, बांका। सोमवार को जल जीवन हरियाली अभियान अंतर्गत जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम का आयोजन माननीय कृषि मंत्री श्री अमरेंद्र प्रताप सिंह की अध्यक्षता में की गई है। मुख्य अतिथि के रुप में माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से 30 जिलों में प्रथम वर्ष एवं आठ जिलों में द्वितीय वर्ष के कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सभी जिलों के जिला पदाधिकारी, जिला कृषि पदाधिकारी, कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक एवं किसान उपस्थित थे।
जलवायु अनुकूलन कृषि कार्यक्रम के अंतर्गत बांका जिला के रजौन प्रखंड के ग्राम उपरामा, भुसिया, लीलातरी, कठौन, बसुआड़ा में कार्यक्रम किया जा रहा है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बांका जिला के वरीय वैज्ञानिक सह अध्यक्ष कृषि विज्ञान केंद्र बांका डॉ मुनेश्वर प्रसाद द्वारा बताया गया कि, यह कार्यक्रम विगत वर्षों से चलाया जा रहा है। इस कार्यक्रम में प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण के साथ-साथ फसल अवशेष प्रबंधन का कार्य भी किया जा रहा है। यदि इसके लाभ की बात की जाए तो कम समय में किसानों के खेती की उर्वरा मृदा उत्पादकता लागत मूल्य में कमी, सिंचाई एवं श्रम की बचत के साथ-साथ 15 से 20 प्रतिशत उत्पादन में वृद्धि होती है। पराली प्रबंधन हेतु मशीन हैप्पी सीडर द्वारा गेहूं एवं मल्टीकॉर्प प्लांटर से मशूर एवं मक्का की सीधी बुवाई की जाती है। जिससे किसानों को समय की बचत के साथ-साथ प्राणी का प्रबंधन करते हुए फसल का अधिक उत्पादन लिया जा रहा है। पराली के जमीन में बीत जाने से मिट्टी पर मल्चिंग हो जाता है।
जिससे खरपतवार बहुत ही कम होते हैं। जैविक कार्बन, उर्वरा शक्ति तथा लाभकारी जुबानी अधिक मात्रा में जमीन में बढ़ते हैं। जो फसल के उत्पादन में वृद्धि करते हैं। सीधी बुवाई से यह भी लाभ होता है कि कीट एवं रोगों का प्रकोप कम होता है तथा पराली से नमी का संरक्षण अधिक दिनों तक होने से किसानों को सिंचाई के खर्च में बचत होती है तथा उत्पादन भी अधिक मिलता है। हैप्पी सीडर के माध्यम से अगर धान गेहूं तथा अन्य फसल को लगाया जाए, तो फसल अवशेष (पराली) उसे खेत में रह जाते हैं। जिसे जलाने की आवश्यकता नहीं होती है। पराली को जलाया जाता है तो पर्यावरण में प्रदूषण फैलने के साथ-साथ मिट्टी के लाभकारी जीवाणु भी नष्ट हो जाते हैं। जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है। अतः खेतों में पराली को नहीं जलाना चाहिए। पराली अवशेष प्रबंधन में रीपर कम बाईंडर, रोटरी मलवर, हैप्पी सीडर, रीपर, एस० एम० एस० (एक्स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम) इत्यादि मशीन का उपयोग उपयोग किया जाता है। जिस पर सरकार द्वारा अनुदान की व्यवस्था की गई है। रीपर कम बाइंडर में 50 प्रतिशत एवं अन्य पराली मैनेजमेंट पर 75 प्रतिशत अनुदान का प्रावधान है।
कुमार चंदन, ग्राम समाचार संवाददाता, बौंसी।
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