ग्राम समाचार, बौंसी, बांका। सदियों से लगता आ रहा विश्व प्रसिद्ध बौंसी का यह मंदार मेला शायद इस बार लगना मुश्किल सा दिख रहा है। जबकि बौंसी का यह प्रसिद्ध मंदार मेला हमेशा से यहां का लोक आस्था का केंद्र रहा है। यहां का यह विश्व प्रसिद्ध मेला कई धर्मों को जोड़ने वाला मेला है। चाहे वह सनातन धर्म हो या फिर जैन धर्म हो या आदिवासी समाज के लिए सफा धर्म हो।
अंग की धार्मिक व सांस्कृतिक सुंदरता की सदियों से यह परिचायक रहा है। परंतु प्रशासन के ढुलमुल रवैये से अंग प्रदेश का यह विश्व प्रसिद्ध मेला का अस्तित्व खतरे में दिखाई दे रहा है। इस मेले का एक अलग पौराणिक गाथा है। हर वर्ष मकर सक्रांति के दिन भगवान मधुसूदन हाथी पर सवार होकर पापहारणी सरोवर में उन्हें विधि विधान के साथ उन्हें स्नान कराया जाता है। तत्पश्चात मंदिर में दही, चूड़ा, गुड़, तिल आदि का भोग लगाया जाता है। यही भोग का प्रसाद सभी ग्रहण करते हैं। मगर इस बार मंदार मेले का लगना शायद कम दिखाई दे रहा है। विदित हो कि 24 दिसंबर को मेले का डाक होना था। परंतु डाक नहीं हो पाया। जिसका समय अवधि बढ़ाया गया। लेकिन इसके बावजूद भी मेले का लगना शायद कम दिख रहा है। जनता इस बार असमंजस में है। यह पौराणिक मंदार मेला इस वार नहीं लगना लोगों में संशय पैदा कर रहा है।
वहीं दूसरी ओर कृषि प्रदर्शनी में अभी तक क्यारियां भी नहीं तैयार हो पाई है। इससे स्पष्ट पता चलता है कि मेले का लगना इस बार मुश्किल है। विदित हो कि कृषि प्रदर्शनी से स्थानीय एवं दूर-दराज से आए किसानों को कृषि संबंधी उन्हें जानकारी मिलती थी। परंतु इस बार ऐसा नहीं दिख रहा है। वहीं मेले में आने वाले खेल तमाशे वाले एवं स्थानीय दुकानदारों का जीविकोपार्जन का बहुत बड़ा साधन था। लेकिन इस बार ऐसा प्रतीत हो रहा है कि, समय पर डाक नहीं होना एवं मेले का नहीं लगना यह यहां के लोक आस्था के विरुद्ध है।
कुमार चंदन, ग्राम समाचार संवाददाता, बौंसी।
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