3 दिसंबर1884 में बिहार के सारण में जन्मे डा.राजेंद्र प्रसाद भारत की एक धरोहर थे।.स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार सँभालने वाले राजेंद्र बाबू को हम देशरत्न के नाम से भी जानते है।भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के ओजस्वी शिक्षित और प्रखर नेता के रूप इन्होने अपना योगदान दिया।
महापुरुषों का जन्म अपने लिए नहीं हुआ करते, वे तो किसी बड़े काम को पूरा करके ही दम लेते है। सन् 1917 में जब गाँधीजी ने चंपारण में अँगरेजों के खिलाप आवाज उठायी तभी राजेंद्र बाबू की भेंट गाँधीजी से हुई और वे (राजेंद्र बाबू) उनके शिष्य हो गये। उन्होंने चलती वकालत को लात मार दी और देश की सेवा का व्रत लिया। यद्यपि वे बराबर दमे से परेशान रहे तथापि देश के लिए कठिन-से-कठिन परिश्रम से भी कतराते नहीं थे। वे एक सच्चे, धुनी,उत्साही,ईमानदार और परिश्रमी कार्यकर्ता थे। उनका शरीर दुबला-पतला था, किंतु उनकी आत्मा बलवती थी।उन्होंने बिहार के संगठन का बीड़ा उठाया। पटना का 'सदाकत आश्रम' उनकी अथक सेवा का फल है, जिसकी स्थापना कर उन्होंने बिहार में काँग्रेस की जड़ जमायी थी।
आज के कार्यक्रम में एन एस एस के नोडल अधिकारी डॉ रंजीत सिंह,शिक्षक डॉ अनूप साह,डॉ संजीव सिंह,प्रो मेरिम हेम्ब्रम, प्रो चंद्रशेखर प्रमाणिक एन सी सी के शंकर यादव,अंगद यादव,कमलेश मंडल,रामकुमार यादव,बासुदेव मंडल,संजीत यादव, जुली ,पूजा , सारिका,लक्ष्मी,रूपा, दीपाली,नरगिस, अनीसा सहित अनेकों छात्र छात्राओं ने भाग लिया।
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें