ग्राम समाचार,बौंसी,बांका। प्रखंड क्षेत्र में हर्षोल्लास के साथ आज करमा पर्व मनाया गया। भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को हर साल यह पर्व मनाया जाता है। सुबह से ही प्रखंड के सभी गांवों में कर्मा करने वाली बहनों के भाइयों के द्वारा सभी साजों-समान को व्यवस्था किया गया है। नियम अनुसार पूजन स्थल को विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधे तथा डालियों से सजाया गया, विद्युत सज्जा लगाया गया और प्रकृति के मीठे मीठे भजनों से पूजन स्थल को रमणीय कर दिया गया। भाई-बहन के इस अटूट प्रेम को दर्शाने वाले इस पर्व में प्रकृति के साथ साथ करमडाली की भी पूजा की जाती है।
क्या है करमा पर्व की कहानी
पुरातन काल से कहा जाता है कि कर्मा और धर्मा दो भाई थे जिन्होंने अपनी बहन की रक्षा के लिए जान को दांव पर लगा दिया था। दोनों ही भाई काफी गरीब थे तथा उसकी बहन भगवान से हमेशा सुख-समृद्धि की कामना करते हुए तप करती थी। बहन के तप के कारण दोनों भाइयों के घर में सुख, शांति-समृद्धि आई थी। जिसके फलस्वरूप दोनों भाइयों ने दुश्मनों से अपनी बहन की रक्षा करने के लिए जान तक गंवा दी थी। इसी के बाद से इस पर्व को मनाने की परंपरा शुरू हुई। वहीं दूसरी ओर इस पर्व से जुड़ी एक और किदवंती प्रचलित है, बताया जाता है कि एक बार कर्मा नामक भाई व्यापार करने हेतु परदेस गया था और वहीं जाकर व्यापार में
रम गया। बहुत वर्षों के बाद जब कर्मा घर लौटा तो उसने देखा कि उसका छोटा भाई धर्मा करमडाली की पूजा में दिन रात लीन रहता है। धर्मा ने बड़े भाई के लौटने पर कोई खुशी नहीं जताई और पूजा में ही लीन रहा। यह सब देख कर कर्मा को बहुत गुस्सा गया और उसने पूजा का सामान फेंक दिया और अपने भाई धर्मा से झगड़ा करने लगा। धर्मा भाई के इस अधर्म को चुपचाप सहता रहा। समय का पहिया चला और धीरे धीरे कर्मा की सुख-समृद्धि खत्म हो गई। आखिरकार धर्मा को अपने भाई पर दया आ गयी और उसने अपनी बहन के साथ ईश्वर से प्रार्थना की और सब ने मिलकर करमडाली की पूजा की। एक रात कर्मा को देवता ने स्वप्न में करमडाली की पूजा करने को कहा। कर्मा ने वहीं किया जिससे कर्मा की सुख-समृद्धि लौट आई।
कुमार चंदन,ग्राम समाचार संवाददाता,बौंसी।
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