ग्राम समाचार न्यूज़ : रेवाड़ी : परम पूज्य आचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज ने दसलक्षण महापर्व के अवसर पर अतिशय क्षेत्र नसिया जी में आयोजित श्री तीस चौबीसी महामण्डल विधान में धर्म के पंचम लक्षण "उत्तम सत्य" की व्याख्या करते हुए कहा कि झूठे वचनों का त्याग करना और आत्मा में सत्याचरण लाना सत्य धर्म है| जो वस्तु जैसी है, उसे वैसा ही मानना सत्य है| सत्य के विपरीत मिथ्यात्व ही समस्त संसार में भ्रमण का कारण है| इसलिए हमें सत्य धर्म को अंगीकार करना चाहिए, यही लक्षण हमें मोक्ष की ओर ले जाता है| सत्य धर्म की चर्चा जब भी चलती है, तब-तब प्राय: सत्य वचन को ही सत्य धर्म समझ लिया जाता है| लेकिन सिर्फ सत्य वचन ही सत्य धर्म नहीं है| आत्म-वस्तु के त्रिकालिक सत्य स्वरुप के आश्रय से उत्पन्न होने वाला वीतराग परिणिति रूप ही उत्तम सत्य धर्म है|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि उत्तम सत्य धर्म अनुभव को ही सत्य कहता है| सत्य को कभी भी शब्दों में बाँधा नहीं जा सकता परन्तु शब्दों के माध्यम से समझा जरूर जा सकता है| शब्द ससीम हैं परन्तु सत्य तो असीम है इसलिए जब-जब हम सत्य को स्पष्ट करने के लिए शब्दों का सहारा लेंगे तब-तब हम सत्य के एक पहलु को गौण कर देंगे| अर्थात एकदेश सत्य का ही निरूपण हो पायेगा| सत्य तो केवल अनुभव में लाया जा सकता है| जिस दिन हमने शब्दों को छोड़ कर अन्तरंग से अनुभव में उतार लिया उस दिन हम सब लोग सत्यता को प्राप्त हो जाएंगे| शब्द जड़ हैं, मुर्दा हैं और सत्य चेतन है और सत्य की केवल अनुभूति की जा सकती है| सत्य को किसी बंधन में बांधना असम्भव है|
सत्य को समझने के लिए शब्दों के जाल में उलझने की आवश्यकता नहीं है, सत्य के लिए ध्यान के अनुभव की गहराई में उतरने की आवश्यकता है| सत्य मुख का विषय नहीं, ह्रदय का विषय है| सत्य जिह्वा का विषय नहीं, जीवन का विषय है| कषायों के अभाव के बिना सत्य की गंध को पाना दुर्लभ है| अभिव्यक्ति में सत्य तो है पर शब्दात्मक है, अनुभवात्मक नहीं| एक असत्य ही जीवन में अनेक दुर्गुणों को जन्म देता है एवं सत्य समस्त सद्गुणों से जीवन को श्रृंगारित करता है| सत्य आत्मोन्नति की परम खुराक है, जीवन का श्रृंगार है, सच्चा मित्र है जो जीवन में श्रेष्ठ राह पर ले जाता है, ऐसा माली है जो जीवन रुपी बगिया को सजाता है, विद्या के लिए कामधेनु है| अतः सत्य के महत्व को समझें, उसे जीवन में उतारें ताकि जिंदगी में शांति स्थापित हो|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि इस संसार को एक बार सत्य की दृष्टि से देखें| केवल मिटने के अलावा संसार कुछ भी तो नहीं है| जो स्थायी है वह दिखने में नहीं आता और जो दिखने में आ रहा है, वह निरंतर मिट रहा है| यही संसार है| हम पर्याय से दृष्टि को हटाकर मूल को देखें| जो व्यक्ति दूसरे को क्लेश पहुँचाने वाले वचनों को छोड़कर अपने और दूसरे के हित करने वाले वचन कहता है, उसे उत्तम सत्य धर्म होता है| समानता रुपी सत्य के साथ ही सुख और शांति का स्रोत फूट जाता है| यदि पर्यायों की विषमता को गौण करके द्रव्य की समानता को मुख्यता दें तो यहाँ किसी जीव के प्रति बैर और किसी के प्रति राग हो ही नहीं सकता| जो सत से युक्त है, वही सत्य है और जो असत से युक्त है अर्थात जो है ही नहीं, उसकी कल्पना में जो उलझा है वह असत्य है|
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