एसयूसीआई कम्युनिस्ट के हरियाणा राज्य सचिव मंडल सदस्य कॉमरेड राजेंद्र सिंह एडवोकेट ने मीडिया को जारी किये अपने एक बयान में आज यहाँ कहा कि भाजपा-जजपा की प्रदेश सरकार की घोर जनविरोधी नीतियों के चलते जनता के सभी तबकों में जबरदस्त आक्रोश है। आंदोलनों का ज्वार पैदा हो रहा है। आगामी लोकसभा, विधान सभा चुनाव से पहले उसे शांत करने की मंशा से ही हरियाणा मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने कथित जनसंवाद कार्यक्रम शुरू किया है ताकि इसके माध्यम से किसी न किसी तरह से जनता को बरगलाया और बहकाया जा सके। लेकिन कुछ दुखी व सताये लोगों ने मुख्यमंत्री के समक्ष सार्वजनिक रूप से आगे आकर उनकी सरकार की कारगुजारियों का चिट्ठा खोलना शुरू किया तो जल्दी ही उनका भ्रम टूट गया है। उन्हें एहसास हो गया है कि चंदा मामा दिखाकर जैसे बच्चे की भूख शांत नहीं की जा सकती, ठीक उसी तरह से सजे-सजाये मंच पर केवल दर्शन देने से ही प्रदेश के लोगों के जीवन की समस्याओं का समाधान मुख्यमंत्री नहीं कर सकते हैं। यही कारण है कि जनसंवाद के दौरान उठ रहे विक्षोभ को दबाने के लिए उन्होंने स्वेच्छाचारी शैली में पीड़ित लोगों को धमका कर चुप कराने, यहाँ तक कि उनकी पिटाई करने तक की धौंसपट्टी जमाई और उनके खिलाफ प्रशासन द्वारा कारवाई करने तक के फरमान जारी कर दिये।
एसयूसीआई कम्युनिस्ट इसका कड़ा विरोध करती है और मुख्यमंत्री जी से कहना चाहते हैं कि सरकार की गलत नीतियों और कुप्रबन्ध से पैदा हुए लोगों की पीड़ा सुनने का मादा उनमें होना चाहिए। बंबूल के पेड़ पर आम नहीं लगते। यदि वे अपने जयकारे सुनने के आदी हैं तो वे भाजपा-प्रायोजित सभाओं में शोभा बढ़ाने में सीमित रहें।। जनसंवाद करेंगे तो लोग अपना दुखड़ा रोयेंगे ही। यह उत्पीड़ित जनों का बुनियादी अधिकार है। मुख्यमंत्री को प्राकृतिक न्याय की लोकतांत्रिक आवाज को दबाने से परहेज करना चाहिए। ऐसे तानाशाहीपूर्ण रवैये से भयभीत कर जनता को कदापि दबाया नहीं जा सकता। लोकतंत्र केवल विधानसभा व संसद के बाड़े तक ही सीमित नहीं है। असली लोकतंत्र जनता की आवाज में निहित है। संसद भी लोकतांत्रिक आन्दोलनों की ही उपज है। हम मांग करते हैं कि जनसंवाद के दौरान जो कोई भी अपनी बात उठाता है तो उसकी बात सुनी जाये। उनके खिलाफ प्रशासनिक कारवाई करने सम्बन्धी फरमान तत्काल प्रभाव से वापस लिया जाये।
एस यू सी आई कम्युनिस्ट पंचकूला में धरने, प्रदर्शनों, रैलियों पर सरकार द्वारा लगाये अंकुश और अप्रत्यक्ष रूप से पाबंदी लगाने के फासीवादी फैसले की भी कड़े शब्दों मे निंदा करती है। सरकार इसे वापस ले।
साथ ही, हम प्रदेश की जनता से अपील करते हैं कि जनजीवन के ज्वलंत सवालों पर और सरकार के अलोकतांत्रिक फैसलों व स्वेच्छाचारी शैली के खिलाफ मुखर होकर सशक्त ढंग से अपनी आवाज बुलंद करने के लिए वह आगे आये।
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