ब्यूरो रिपोर्ट,ग्राम समाचार,बांका। प्रखंड क्षेत्र में मंगलवार को भगवान मधुसूदन की ऐतिहासिक रथ यात्रा बड़े ही हर्षोल्लास के साथ निकाली गई । हालांकि इस बार श्रद्धालुओं को निराश होना पड़ा क्योंकि रथ बौंसी बाजार के मुख्य चौक तक नहीं आ पाई। बताया गया कि मंदार हिल हंसडीहा रेलखंड के विद्युतीकरण के बाद मंदिर जाने वाले मार्ग में बीएसएनएल टावर के समीप बैरियर लगा दिया गया है। रथ ऊंचा होने की वजह से बैरियर के नीचे से रथ गुजर नहीं पाई। जिस वजह से रथ को वापस मोड़ लिया गया। हालांकि रथ यात्रा में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी थी। भगवान मधुसूदन के रथ को बड़े ही आकर्षक तरीके से सजाया गया था। इसके पूर्व भगवान का सर्वप्रथम पंचामृत स्नान कराया गया। पूजा और श्रृंगार के बाद भगवान को करीब 2:00 बजे सजे हुए रथ पर बिठाकर पंडितों की टीम के द्वारा जयकारे के साथ रथ खींचकर आगे बढ़ाया गया। जिसके बाद जय मधुसूदन जय मंदार के नारे से पूरा मंदिर परिसर गुंजायमान हो गया। इस वर्ष भगवान के भक्तों को विश्वास था कि रथ यात्रा के रथ को खींचने और भगवान के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होगा। लेकिन प्रशासनिक उपेक्षा के साथ-साथ समिति सदस्यों के द्वारा ध्यान नहीं देने के कारण रथ को इस बार भी मुख्य चौक तक ला पाना असंभव हो गया। मालूम हो कि, पहले हाथी पर भगवान की रथ यात्रा निकाली जाती थी। बौंसी के ऐतिहासिक भगवान मधुसूदन के
विधिविधान से पूजा अर्चना के बाद यहां की कुछ परंपराएं भी हैं। जिनमें मकर संक्रांति के अवसर पर मंदार की तलहटी में अवस्थित फगडोल पर जाना और रथयात्रा के अवसर पर बौंसी बाजार तक आना भी शामिल है। इन दोनों परंपराओं को निभाने के लिए तब के राजाओं, जमींदारों की ओर से हाथी और रथ का प्रबंध किए जाने की परंपरा थी। हालांकि बाद में लकड़ी और लोहे के हाल चढे पहिए से बने दो मंजिला रथ को तैयार किया गया था। इसमे बगड़म्मा ड्योढ़ी का काफी योगदान था। 16 वर्ष पहले तक हाथी से भगवान की सवारी मकर सक्रांति के अवसर पर निकाली जाती थी। जिसकी व्यवस्था बगडूम्मा ड्योढ़ी के अशोक सिंह करते थे। हाथी की अनुपलब्धता और बौंसी मेले के प्रशासनिक कब्जे के कारण उन्होंने अपना हाथ पीछे खींच लिया था। रथ यात्रा के समय भगवान की सवारी रथ को श्रद्धालु जन खींचते हुए बाजार तक लाते हैं और फिर वापस ले जाते हैं। आसपड़ोस की आबादी के अलावा झारखंड के समीपवर्ती इलाकों से भारी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं परंपरा के अनुसार मौके पर वर्षा भी होती है और लोग इस बारिश में भींग कर खुद को धन्य समझते है। कहते हैं कि भगवान जगन्नाथ ही मधुसूदन है तो परंपराए तो वही रहेंगी। मालूम हो कि 27 वर्ष पूर्व भी मुख्य चौक तक नहीं गयी थी रथ यात्रा। 1996 की रथयात्रा के दौरान बौंसी बाजार आने के क्रम में रेलवे क्रॉसिंग के नजदीक रथ के पहिए टूट गये थे, तब रथ को बाजार ले जाना मुश्किल हो गया था। किसी तरह से खींचकर जुगाड़ लगाकर मंदिर तक वापस लाया गया। जिसके बाद स्थानीय समाजसेवियों की सहायता से लोहे का रथ बनाने का प्रस्ताव लाया गया और 1997 में पंजवारा के प्रेम शंकर शर्मा के सहयोग से नये रथ का निर्माण किया गया। हालांकि उस वक्त इसमें 12 पहिया लगाये गये थे और इसे दो मंजिला तैयार किया गया था। 2015 में रथयात्रा के पूर्व इसमें चार पहिया और जोड़ दिये गये। पंडितों के द्वारा तर्क दिया गया था कि 12 पहिए मधुसूदन के रथ में जोड़ा जाना अशुभ है, इसलिए 16 पहिए लगाये गये। मालूम हो कि पिछले 500 वर्ष पूर्व से रथ यात्रा की यह परंपरा भगवान मधुसूदन की शाही नगर भ्रमण यात्रा से रही है। सन 1505 ईसवी में गौरांग चैतन्य महाप्रभु का मंदार बैद्यनाथ धाम तीर्थाटन के क्रम में यहां रुक कर जगन्नाथपुरी की तर्ज पर रथ यात्रा की परंपरा आरंभ किया था। तब से भगवान मधुसूदन की नगर भ्रमण रथ यात्रा 16 चक्का वाले रथ पर विराजित हो प्रत्येक वर्ष आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया को नगर भ्रमण करने का सिलसिला जारी है। बिहार बंगाल एवं झारखंड के लोग भारी संख्या में यहां पहुंचते हैं। मेले का माहौल बना रहा। पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था में पुलिस बल तैनात थे।
कुमार चंदन,ब्यूरो चीफ,बांका।
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