परम पूज्या गुरु मां आर्यिका रत्न 105 अर्हंश्री माताजी ने रेवाड़ी के नसिया जी में प्रणम्य सागर मांगलिक भवन में चल रहे 48 दिवसीय भक्तामर विधान के अंतर्गत 14 वें काव्य के महत्व के बारे में बताया।
भक्तामर का चौदहवाँ काव्य यह काव्य व्यसन से मुक्त कराने वाला है। संस्कारों में पुनः संस्कारित करने वाला यह काव्य है। माताजी ने बताया आज से आप इसका काव्य का ऋद्धि मंत्रों के साथ साढ़े बारह सौ (1250) माला करें ।जीवन में संक्लेश को दूर करें, राग द्वेष को छोड़कर विशुद्धि के साथ इस 14वें नंबर के काव्य की आराधना श्रद्धा भक्ति समर्पण के साथ करें । यह काव्य पतित को पावन बनाने वाला है, बंधनों से मुक्त कराने वाला है और संपूर्ण कार्य की सिद्धि कराने वाला है। आज के पुण्यार्जक परिवार- श्री अनिल कुमार श्री आशीष जैन परिवार,तिजारा (राज.), श्रीमान राजेंद्र जैन श्री अमित जैन रजत जैन परिवार, वैदवाड़ा, रेवाड़ी, श्रीमान ज्ञानचंद जी जैन श्री संजीव जैन चर्चित जैन परिवार, छिपटवाड़ा, रेवाड़ी। सूचना प्रभारी श्रीमती नेहा जैन प्राकृत ने बताया प्रवचन के पश्चात आज का नियम में *"मक्का और स्वीट कॉर्न त्याग"* करवाया। यह विधान 48 दिनों तक इसी तरह पूरी भक्ति के साथ चलेगा। सैकड़ों परिवार प्रभु भक्ति का आनंद ले रहे हैं।
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