हमारी दृष्टि भगवान के दोनों चरणों मे होनी चाहिए। ये उद्गार परम पूज्या आर्यिका श्री 105 अर्हंश्री माताजी ने रेवाड़ी के नसिया जी में प्रणम्य सागर मांगलिक भवन में दिए। आर्यिका ससंघ के सानिध्य में चल रहे 48 दिवसीय भक्तामर विधान अत्यंत भक्ति के साथ प्रारंभ हुआ।
इस विधान में रेवाड़ी के सैकड़ों परिवार आनंद के साथ बैठ रहे हैं। प्रथम दिवसीय विधान के पुण्यार्जक परिवार "श्री पदम चंद जैन सपरिवार एवं श्री मोहित जैन सपरिवार" रहे।
माताजी ने प्रथम दिवस में प्रथम काव्य का महत्व बताते हुए बताया कि प्रथम काव्य को पढ़ते हुए हमारी दृष्टि भगवान के दोनों चरणों पर होनी चाहिए। हमें भगवान के चरणों को अपनी थाली पर विराजमान कर लेने चाहिए। जो भगवान के दोनों चरणों को पकड़ लेता है। उन परम श्रद्धान करता है वह कभी भी भवसागर में डूब नहीं सकता। यदि आप भवसागर में डूबना नहीं चाहते तो आपको उनके दोनों चरण पूरी श्रद्धा के साथ पकड़ लेने चाहिए।
हमें क्रियाओं से ज्यादा भावों की शुद्धि पर ध्यान देना चाहिए। भक्तामर स्तोत्र का प्रथम काव्य सभी विघ्नों को एवं कर्मों को क्षय करने वाला होता है।
माताजी ने कहा जिन लोगों के हाथों में प्रतिदिन सुबह उठते ही चाय का कप होता था आज उनके हाथों में भगवान के अभिषेक का कलश था। जिन लोगों के सामने प्रतिदिन नाश्ते की प्लेट होती थी आज उनके समक्ष भगवान के पूजन की द्रव्य थी, इससे बड़ा पुण्य औऱ क्या होगा।
प्रवचन के पश्चात आज का नियम में "मीठा का त्याग" करवाया। यह विधान 48 दिनों तक इसी तरह पूरी भक्ति के साथ चलेगा।
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