परम पूज्या गुरु मां आर्यिका रत्न 105 अर्हंश्री माताजी ने रेवाड़ी के नसिया जी में प्रणम्य सागर मांगलिक भवन में चल रहे 48 दिवसीय भक्तामर विधान के अंतर्गत प्रवचन ने बताया कि दृष्टि दोष दो प्रकार के हैं व्यवहार दृष्टि और नय दृष्टि जैसे आपके दो नयन है वैसे ही दो नय होते हैं। आचार्य भगवन् कहते हैं दोनों नयों को समझना बहुत अनिवार्य है। व्यवहार नय में कहा जाता है मुझे नेत्र रोग है जबकि निश्चय नय से रोग शरीर को होता है आत्मा को नहीं। शरीर का रोग दूर करने के लिए औषधि की आवश्यकता होती है। जब औषधी कार्य न करें तो भक्ति की आवश्यकता होती है। भक्ति में वह शक्ति है कि 48 ताले टूट गए। यदि आपके नेत्र में कोई तकलीफ हो तो वह भक्ति के प्रभाव से दूर हो जाती है।
सोऽमं स: अह्म् अर्थात वह मैं मैं वह, जो शक्ति परमात्मा के अंदर है वह शक्ति तुम्हारे अंदर है। यह जो शरीर है वह नौकर है इसको जितना कहेंगे उतना यह कार्य करेगा। थोड़ा सा प्रमाद करोगे तो यह कहेगा रहने दो, मालिक तो मना कर रहा है। यह शरीर कभी नहीं कहेगा कि तुम सुबह 5:00 बजे उठकर भक्तामर विधान में आओ। इसलिए मैं तो वह हूं जो शक्ति उनके अंदर है वही मेरे अंदर है। भगवान मैं आपका पीछा छोड़ने वाला नहीं हूं जब तक कि मैं आप जैसा न बन जाऊं।
जैसे एक नन्हा बालक मां से बिछड़ता है और जब मां उसके पास पहुंचती है तो देखती है यह तो शेर का ग्रास होने वाला है तो वह मां शेर का सामना करने को तैयार हो गई, इसी प्रकार आदिनाथ भगवान मैं शक्ति के बिना भी आपकी भक्ति करने को तैयार हुआ हूं। सूचना प्रभारी श्रीमती नेहा जैन प्राकृत ने बताया कि आज के पुण्यार्जक परिवार श्रीमान राकेश कुमार जी जैन श्रीमती आभा जैन सर्राफ परिवार श्रीमान राजकुमार कुमार जी जैन श्रीमती पूनम जैन सर्राफ परिवार श्रीमान अजय कुमार जी जैन श्रीमती सुधा जैन परिवार AMW, की ओर से श्री भक्तामर विधान हुआ। प्रवचन के पश्चात आज का नियम में "शिमला मिर्च का त्याग" करवाया। यह विधान 48 दिनों तक इसी तरह पूरी भक्ति के साथ चलेगा। सैकड़ों परिवार प्रभु भक्ति का आनंद ले रहे हैं।
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