Editorial: स्वतंत्रता संग्राम में आर्य समाज की महत्वपूर्ण भूमिका

Rajeev Kumar, Editor in chief, Gram Samachar
राजीव कुमार
भारत की स्वतंत्रता संग्राम एक महत्वपूर्ण चरण था जब देश आजाद नहीं हुआ था और देश में अनेक सामाजिक असमानताएँ और बुराइयाँ फैली हुई थीं। इस संग्राम में आर्य समाज ने भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया और देश की स्वतंत्रता के मार्ग में अपने संकल्प का पालन किया।

सुधारवादी आंदोलन और कार्यक्रम की शुरूआत महान समाज सुधारक स्वामी दयानंद सरस्वती ने की थी। उन्होंने 12 अप्रैल, 1875 को मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य हिन्दू समाज में सुधार करना और वेदिक ज्ञान की पुनर्स्थापना था। महर्षि दयानंद सरस्वती का संघर्ष सन् 1857 के पश्चात के क्रांतिकारियों पर अत्यंत प्रभावशाली था।

आर्य समाज के शिष्यों ने स्वाधीनता आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर, लाला हरदयाल, भाई परमानन्द, सेनापति बापट, मदनलाल धीगंड़ा आदि आर्य समाज के शिष्य थे जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख भूमिका निभाई और देश को आजादी की ओर अग्रसर किया।

डी.ए.वी. कालेज लाहौर के इतिहास और राजनीति के प्रोफेसर जयचंद्र विद्यालंकार पंजाब के क्रांतिकारियों के मार्गदर्शक रहे और उनका योगदान स्वतंत्रता संग्राम में अत्यंत महत्वपूर्ण था।

स्वतंत्रता सेनानी सरदार भगत सिंह के दादा जी सरदार अर्जुन सिंह और पिता श्री किशन सिंह आर्य समाज के सजीव सदस्य थे। भगत सिंह के विचारों पर भी आर्य समाज के संस्कार की छाप स्पष्ट दिखाई पड़ती है, जो देश की आजादी के मार्ग में उन्होंने पाली थी।

आर्य समाज ने स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और देश की स्वतंत्रता के लिए अपना संकल्प दिखाया। इसके योगदान को सम्मान करते हुए हमें यह याद रखना चाहिए कि समाजिक सुधार के प्रति संकल्पबद्धता से संघर्ष करना ही वास्तविक प्रगति की दिशा में पहला कदम होता है।

स्वतंत्रता संग्राम में आर्य समाज की भूमिका अद्वितीय थी क्योंकि वे सिर्फ समाजिक सुधार नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए भी प्रतिबद्ध थे। आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने विभिन्न समाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई और विशेष रूप से जाति व्यवस्था, सती प्रथा, पुर्दा प्रथा, दलितों के अधिकारों की सुरक्षा और महिलाओं के अधिकारों की प्रोत्साहन की बात की।

आर्य समाज के शिक्षक और शिष्यों ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं की मार्गदर्शन की और उन्होंने उनके संकल्प को मजबूती से समर्थन दिया। आर्य समाज के शिष्यों ने स्वाधीनता संग्राम के प्रेरणास्त्रोत बनकर देश को संघर्ष के लिए तत्पर किया और उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की बलिदान को भी तैयार होने का संकेत दिया।

आर्य समाज की शिक्षा और उनके आदर्शों ने देश के क्रांतिकारियों को सशक्त बनाया और उन्हें देश की स्वतंत्रता के लिए नई ऊंचाइयों को छूने का साहस प्रदान किया। आर्य समाज के सदस्यों ने न केवल समाज में सुधार की दिशा में प्रयास किया, बल्कि उन्होंने राष्ट्र के उत्थान के लिए भी अपना योगदान दिया।

स्वतंत्रता संग्राम में आर्य समाज का योगदान एक प्रेरणा स्रोत बना, जिसने लोगों को देश के स्वतंत्रता के लिए आग्रहित किया। इसके उदाहरण से हमें यह सिखने को मिलता है कि समाज के उत्थान के लिए संकल्पबद्धता से संघर्ष करने में ही सच्चे गरिमा और समृद्धि की कुंजी होती है।

स्वतंत्रता संग्राम में आर्य समाज की भूमिका को सम्मान करते हुए हमें यह सोचने का अवसर मिलता है कि कैसे एक सामाजिक सुधारक समाज की मानवाधिकार और स्वतंत्रता की ओर एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ा सकता है, और देश की स्वतंत्रता के मार्ग में एक महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।

- राजीव कुमार

(प्रधान संपादक, ग्राम समाचार)

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Editor - न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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