परम पूज्या गुरु मां *आर्यिका 105 अर्हं श्री माताजी* ने रेवाड़ी के नसिया जी में प्रणम्य सागर मांगलिक भवन में चल रहे 48 दिवसीय भक्तामर विधान के अंतर्गत 21वें काव्य के महत्व के बारे में बताया यह काव्य सर्व सौभाग्य प्रदायी है , दुर्भाग्य को सौभाग्य में परिवर्तित करने वाला है। माताजी कहती हैं प्रतिदिन आदिनाथ भगवान के भक्त नई -नई ऊर्जा और नई- नई उमंग के साथ भक्ति करने आते हैं। इनकी भक्ति में वह शक्ति है जो रोग को निरोग में और कांच को रत्नों में परिवर्तित, अश्रु को सुख में परिवर्तित कर सकती है।
प्रतिदिन भक्त भक्तामर के स्नान से परमात्मा से प्रार्थना करते हैं, हे भगवान! मेरे सारे विघ्न उपद्रव टल जाएं। सर्व सौभाग्य को जगाने के लिए, दुर्भाग्य को सौभाग्य में परिवर्तित करने के लिए भक्त प्रतिदिन भगवान की भक्ति करने आते हैं। भक्त भगवान से मांगते नहीं किंतु उनके विचारों को, उनके भावों को भगवान पढ़ लेते हैं , क्योंकि जब बिना मांगे ही भक्तों की आशायें पूर्ण हो रही है तो भक्त भगवान से क्यों मांगें? भगवान के घर देर होती है अंधेर नहीं। आप और हम भक्तामर की माला को अपने कंठ में धारण किए रहे।
आज के पुण्यार्जक परिवार:- श्री देवेद्र कुमार जैन सर्राफ c/o वर्धमान ज्वेलर्स, रेवाड़ी सूचना प्रभारी नेहा जैन प्राकृत" ने बताया प्रवचन के पश्चात आज का नियम में "मसूर की दाल का त्याग एवं पत्नी अपने पति के पैर छुएगी पति उन्हें आशीर्वाद देंगे" दिलाया। यह विधान "विधानचार्य श्री वरुण भैया" द्वारा कराया जा रहा है, यह 48 दिनों तक इसी तरह पूरी भक्ति के साथ चलेगा। सैकड़ों परिवार प्रभु भक्ति का आनंद ले रहे हैं।
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