रेवाड़ी में मंगलवार को भाड़ावास गेट पर हुए जानलेवा हादसे की आशंका ऐतिहासिक धरोहर बचाओ संघर्ष समिति ने करीब एक वर्ष पूर्व जताई थी। इस संदर्भ में समिति ने नगर परिषद तथा जिला उपयुक्त को लिखित रूप में सुझाव भी दिए थे। उक्त जानकारी देते हुए समिति के अध्यक्ष राव बिजेंद्र सिंह (रानी की ड्योढ़ी) ने बताया कि समिति ने सबसे पहले इन चारों ऐतिहासिक द्वारों के जीर्णोद्धार के समय इन द्वारों की छत पर पानी निकासी का उचित प्रावधान न करने पर चिंता जताई थी। गत वर्ष इन द्वारों पर उगे पीपल के पेड़ों को लेकर भी समिति ने पुनः लिखित रूप में नगर परिषद् तथा जिला उपायुक्त को इन द्वारों में लगातार पानी मरने के चलते होने वाले संभावित नुकसान तथा ऐतिहासिक द्वारों की ढहने की आशंका जताई थी। उन्होंने बताया कि शहर के अन्य ऐतिहासिक स्थलों तथा द्वारों की भी यही स्थिति है। एक ओर जीर्णोद्धार के दौरान किए गए प्रबंधन के चलते शहर की ऐतिहासिक इमारतों के मूल स्वरूप से छेड़खानी की जा रही है, वहीं उनके संरक्षण पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा।
राव ने बताया कि चारों द्वारों की इस बदहाली के अलावा नंदसरोवर तथा इस पर बनी छतरियां, रेजांगला स्मारक के सामने बनी रेवाड़ी के पूर्व शासकों की छतरियां, तेज सरोवर, सोलहराही सरोवर जैसी तमाम ऐतिहासिक इमारतें तिल तिल कर नष्ट होने के कगार पर हैं, किंतु प्रशासन इनके संरक्षण के लिए कोई योजना धरातल पर नहीं उतरता नज़र आ रहा। यह पहलू बेहद चिंतनीय है।
उन्होंने जिला प्रशासन से मांग की है कि वीरभूमि रेवाड़ी की सभी ऐतिहासिक इमारतों तथा स्मारकों का संरक्षण एवं संवर्धन किया जाना अति आवश्यक है, ताकि आने वाली पीढ़ियों को अपने पुरखों के इतिहास एवं संस्कृति के मूक साक्षी रही इन प्राचीन कलात्मक कारीगरी के ऐतिहासिक इमारतों से जानकारी मिल सके।
गौरतलब है कि करीब 20 वर्ष पूर्व ऐतिहासिक धरोहर बताओ संघर्ष समिति ने राव बिजेन्द्र सिंह के नेतृत्व में एक लंबा संघर्ष कर सरकार से इन चारों गेट का जिर्णोद्धार कराया था।
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