परम पूज्या गुरु मां *आर्यिका 105 अर्हन माताजी* ने रेवाड़ी के नसिया जी में प्रणम्य सागर मांगलिक भवन में चल रहे 48 दिवसीय भक्तामर विधान के अंतर्गत 17वें काव्य के महत्व के बारे में बताया भक्तामर का सत्तरहवाँ काव्य सर्व रोग निरोधक है। आचार्य मानतुंग महाराज इस काव्य में कहते हैं - हे भगवान! आप सूर्य से भी अधिक प्रकाशमान है। सूर्य तो फिर भी बादल से ढक जाता है किंतु हे भगवान! आपके केवलज्ञान रूपी प्रकाश को कोई भी नहीं ढक सकता है।
माताजी जी ने बताया तुम जिसकी संगति करोगे वैसे ही हो जाओगे। आपने आदिनाथ भगवान की संगति कर ली है, आपने भक्तामर स्तोत्र की संगति कर ली है ,आपने आचार्य मानतुंग महाराज की संगति कर ली है जब आप घर जाते होंगे तो आपके कानों में सिर्फ और सिर्फ भक्तामर स्तोत्र ही गूंजता होगा। इसका तात्पर्य है कि आपने सुसंगति कर ली है। जो गलत संगति करते हैं वे दुर्गति के पात्र होते हैं, दंड के भागीदार होते हैं, अपयश को प्राप्त होते हैं।
आज के पुण्यार्जक परिवार- श्री अजित प्रसाद जी जैन श्री संदीप जैन पंसारी परिवार, महेंद्र कुमार जैन श्री मनीष जैन परिवार जैनपुरी, सूचना प्रभारी नेहा जैन प्राकृत" ने बताया प्रवचन के पश्चात आज का नियम में "मिर्च का त्याग" दिलाया। यह विधान "विधानचार्य श्री वरुण भैया" द्वारा कराया जा रहा है, यह 48 दिनों तक इसी तरह पूरी भक्ति के साथ चलेगा। सैकड़ों परिवार प्रभु भक्ति का आनंद ले रहे हैं।
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