देश जलते हुए मणिपुर पर चार्चा के लिए संसद के विशेष सत्र की मांग करती रही लेकिन तब देश की नहीं सुनी गयी। आज देश जब इस तरह की कोई मांग नहीं कर रहा तब संसद का विशेष सत्र आहूत किया जा रहा है। भला ऐसा कौन सा आसमान टूट पड़ा देश के ऊपर? संसद के विशेष सत्र के आयोजन की ख़बर आने के बाद अटकलों का बाजार गर्म है। अभी तक संसदीय कार्य मंत्री ने संसद के विशेष सत्र की कार्यसूची जारी नहीं की है। सरकार ने इस बाबत न विपक्ष को भरोसे में लिया है और न अपने सहयोगी दलों को। सहयोगी दल सरकारी पार्टी के लिए कोई महत्व नहीं रखते और विपक्ष, जो अब इंडिया हो चुका है, को सरकार विपक्ष नहीं 'घमंडिया' मानती है। ऐसे में घमंडी विपक्ष से क्या बात करना?
आम तौर पर जब कोई विधानसभा भंग करना हो या जब सरकार अल्पमत में आ गयी हो तो ऐसे सत्र आहूत किये जाते हैं। फिलहाल ऐसा कोई मुद्दा नहीं है। जितना सरकारी कामकाज था वो पिछले दिनों पावस सत्र में निबटा लिया गया। ध्वनिमत से निबटा लिया गया। विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव की धज्जियां उड़ा दी गयीं। तब सवाल उठता है कि संसद के विशेष सत्र की क्या जरूरत है?
( यह लेखक के अपने विचार हैं)
- हेमन्त कुमार , गोराडीह, भागलपुर।
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