Bounsi News:1905 ई से स्थापित की जा रही पाड़ेजान स्थित देवी मंदिर में प्रतिमा,बौंसी पुरानी हाट दुर्गा मंदिर का 150 वर्ष पुराना है इतिहास

ब्यूरो रिपोर्ट ग्राम समाचार बांका। ऐतिहासिक पर्यटक क्षेत्र मंदार स्थित बौंसी बाजार के हृदय स्थली में पुरानी हॉट स्थित दुर्गा मंदिर में वैष्णव पद्धति से पूजा करने की परंपरा डेढ सौ सालो से होती आ रही है। जो आज भी अनवरत जारी है। ऐसी मान्यता है कि, इस दुर्गा मंदिर में सबकी मनोकामना पूर्ण होती है। लोगों का ऐसा कहना है कि इस मंदिर में 70 के दशक के पहले बलि प्रथा की परंपरा थी। बाद में श्रद्धालुओं ने बलि प्रथा बंद करते हुए वैष्णवी पद्धति से पूजा-अर्चना की शुरुआत की। कहा जाता है कि मां दुर्गा द्वारा मंदिर के पुजारी को स्वप्न दिया गया था की, मैं यहां पर वैष्णवी रूप में हू और मेरी पारंपरिक पूजा वैष्णवी पद्धति से होनी चाहिए। उसके बाद लोगों ने पुजारी की बात मानकर मंदिर में वैष्णव पद्धति से पूजा प्रारंभ कर दी। वहीं वरिष्ठ समाजसेवी मदन मेहरा का कहना है कि, 1962 में बलि प्रथा बंद कर वैष्णवी पद्धति से पूजा की शुरुआत की गई थी। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि मंदिर की स्थापना के साल से ही यहां पर प्रतिमा का निर्माण कार्य मूर्तिकार सुबल साह के पूर्वज करते आ रहे हैं। यही नहीं वे खुद पिछले 50 वर्षों से यहां पर प्रतिमा का निर्माण कार्य करते आ रहे हैं। जिनका मूल निवास स्थान अमरपुर है। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि पहले उनके पिताजी जगदीश प्रसाद साह प्रतिमा बाद से लगातार शुभम शाह प्रतिमा का निर्माण करते आ रहे हैं। यहां शारदीय नवरात्र में मां की पूजा अर्चना विश्व भव्यता के साथ की जाती है उसी भव्यता अर्चना की जाती है। दुर्गा पूजा के दौरान समिति के सौजन्य से वेद विद्यापीठ पंडितों द्वारा धार्मिक अनुष्ठान सप्तशती धाराप्रवाह पाठ देवी के छप्पन भोग एवं ब्राह्मण कुमारी को भोजन तथा समापन पर गुलाब दूध भगा की परंपरा का निर्वाह भक्ति पूर्ण भावना से की जाती है। वहीं दूसरी ओर बौंसी प्रखंड अंतर्गत श्यामबाजार 


और पाड़ेजान दुर्गा मंदिर की कहानी अत्यंत रोचक और ऐतिहासिक है। प्राप्त जानकारी के अनुसार 19 वीं सदी के आरंभिक काल में क्षेत्र के जमींदारों द्वारा श्यामबाजार दुर्गा मंदिर में स्थापित देवी का नेम- निष्ठा और देवी पूजा पद्धति के साथ स्थानांतरण पाड़ेजान किया गया था, जहां सैकड़ों वर्ष से आज तक देवी की प्रतिमा स्थापित कर जमींदार परिवार के लोगों द्वारा विराट पूजा और मेले का आयोजन किया जाता है। प्रत्येक वर्ष विजयादशमी के अवसर पर यहां भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। यहां की ऐतिहासिक जानकारी देते हुए जमींदार परिवार की वर्तमान पीढ़ी नीरोज प्रसाद सिंह ने बताया कि उनके पूर्वजों से मिली जानकारी के अनुसार जमींदार बद्री नारायण सिंह की पत्नी विराज कुमारी ने श्यामबाजार देवी दुर्गा की पूजा व्यवस्था को यहां से करीब 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पाड़ेजान दुर्गा मंदिर में स्थापित किया। इस दौरान मार्ग में कदम कदम पर बलि देकर खून के धार पर माता को पांडे जान मंदिर में स्थापित कर पूजा अर्चना आरंभ की गई। मालूम हो कि अनुसार जमींदार परिवार में वर्तमान 9 परिवारों के द्वारा ही अपनी- अपनी पाली से इस पूजा की सारी तैयारियों का खर्च वहन किया जाता है। इस दुर्गा मंदिर के रहस्य के बारे में निरोज कुमार सिंह ने बताया गया कि रानी विराज कुमारी ने देवी स्थापित करने के प्रथम वर्ष कोई बली न देकर वैष्णवी दुर्गा की पूजा की थी। इसके बाद से आज तक यहां फिर से बलि प्रथा अनवरत जारी है। एक दशक पूर्व ही इस मंदिर को इन लोगों के माध्यम से भव्य स्वरूप दिया गया है। दशमी की मेला के बाद यहां पास ही स्थित डकाय नदी में सम्पूर्ण सिकंदरपुर वासियों के द्वारा माता की भव्य प्रतिमा को कांधे पर उठा कर विसर्जित किया जाता है। यहां मेले के आयोजनकर्ता में मुख्य रूप से श्यामा प्रसाद सिंह, निरोज कुमार सिंह, मनोज कुमार सिंह, गिरजा प्रसाद सिंह, अंबिका प्रसाद सिंह, शारदा प्रसाद सिंह, कल्याण कुमार सिंह, जय प्रकाश सिंह और ललन कुमार सिंह के पारिवारिक सदस्यों का भी महत्वपूर्ण योगदान सदा रहता है। इन्हीं 9 परिवारों के द्वारा मंदिर में पूजा अर्चना, प्रतिमा स्थापित, मेले का आयोजन विधिवत किया जाता है। बताया जाता है कि यहां मंदिर में पहले माता पिंडी रुप में थीं। लगभग 1905 से पाड़ेजान में स्थित देवी मंदिर में प्रतिमा स्थापित की जा रही है। वहीं, दूसरी ओर श्यामबाजार स्थित इसके पुराने दुर्गा मंदिर में भी स्थानीय लोगों के विचार और सहयोग के बाद कई वर्षों में दुर्गा पूजा पर मूर्ति स्थापित कर एकादशी को भव्य मेले का आयोजन किया जा रहा है और यहां भी मनोकामना पूर्ण होने पर बलि दी जाती है।

कुमार चंदन,ब्यूरो चीफ,बांका।

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Editor - कुमार चंदन,ब्यूरो चीफ,बाँका,(बिहार)

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