ब्यूरो रिपोर्ट ग्राम समाचार बांका। मकर सक्रांति पर्व को लेकर पूरे प्रखंड में उल्लास का माहौल देखने को मिला। शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में सोमवार को इस पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। वहीं मधुसूदन मंदिर को भव्य तरीके से पुष्पगुच्छ की मालाओं से सजाया गया था। मंदिर प्रांगण में श्रद्धालुओं की काफी भीड़ देखी गई। सर्वप्रथम भगवान मधुसूदन को पंचामृत स्नान व श्रृंगार पारंपरिक पूजन पद्धति से कराया गया। उसके बाद परंपरा के अनुसार दही, चूड़ा और तिल का भोग लगाया गया। वहीं भोग का प्रसाद श्रद्धालुओं ने ग्रहण किया। इसके उपरांत स्थानीय पंडा समाज, धर्म रक्षणी महासभा व अंचल प्रशासन की मौजूदगी में भगवान मधुसूदन की शाही शोभायात्रा बाजे गाजे के साथ धूमधाम से निकाली गई। शोभायात्रा में गरुड़ रथ पर भगवान को आरुढ़ कराया गया। मंदिर के पुजारी लक्ष्मण झा भगवान को गोद में लेकर बैठे। उसके बाद मधुसूदन मंदिर के प्रांगण से पापहरणी सरोवर के लिए प्रस्थान किया गया। इस दौरान प्रशासनिक टीम भी उपस्थित रही। इसके पुर्व दही चुरा और गुड़ से तैयार मिठाई भगवान के समक्ष भोग के रूप में मकर संक्रांति
के अवसर पर सोमवार को पड़ोसी गए विभिन्न प्रकार के मकर संक्रांति विशेष व्यंजन भगवान को सुबह सवेरे दरबार में सोपा गया। प्रसाद भगवान को अर्पण करने के लिए सुबह से ही लोगों की भीड़ लगी रही लोगों ने भगवान की पूजा आरती भी की। शोभा यात्रा मधुसूदन मंदिर होते हुए, पापहरणी सरोवर के फाग्दोल मंदिर तक पहुंची। जहां पर भगवान को थोड़ी देर विश्राम कराया गया। उसके बाद फाग्दोल मंदिर से वापस भगवान को मधुसूदन मंदिर तक लाया गया। सिंहासन पर बैठकर भगवान ने क्षेत्र के श्रद्धालुओं को दर्शन दिया और समृद्धि एवं सुख का आशीर्वाद दिया। रथ यात्रा में पहली बार भगवान के स्वरूप की यात्रा देख लोग जयकारे लगाने लगे लोगों का कहना है कि राम जन्मोत्सव और रामलला मंदिर में पूजा के विशेष अवसर को लेकर इस बार यह देवी देवताओं की झांकी लोगों की आकर्षण का केंद्र बनी रही। मालूम हो कि भगवान मधुसूदन प्रतिवर्ष मकर संक्रांति की तिथि पर अपने भक्त मधु कैटभ को दर्शन देने मंदार की तराई में अवस्थित फगदोल मंदिर आते हैं। इस अवसर पर गौड़ीय संप्रदाय के वैष्णव भक्त भी बड़ी संख्या में यहां रहते हैं जो पश्चिम बंगाल से दर्शन-पूजन हेतु आते हैं। यह परंपरा 17 वीं शताब्दी से है। दो दशक पहले तक देव मधुसूदन हाथी पर सवार होकर आते थे। इस वेदिकोष्ठ पर लगे शिलालेख के अनुसार इसका निर्माण 1599 ईस्वी में छत्रपति ने कराया था। ये उस समय यहां के ज़मींदार थे। इस वेदिकोष्ठ में प्रतिष्ठापन से पहले देव मधुसूदन का मंदिर पर्वतशीर्ष पर था। जहां चैतन्य महाप्रभु ने भी 1507 ईस्वी में इनका दर्शन किया था। अब यह मंदिर जैन सम्प्रदाय वालों के अधिकार में है। इन दिनों 400 वर्षों से देव मधुसूदन मंदार पर्वत से 5 किलोमीटर दूर बौंसी के मंदिर में रहते हैं। यहीं पास में वह वेदिकोष्ठ भी है जहां चैतन्य देव 16वीं सदी में आए थे। इस कोष्ठ में उनके चरणचिह्नों की स्थापना गौड़ीय सम्प्रदाय द्वारा की गई है। अब इस मंदिर के प्रक्षेत्र को पर्यटन विभाग ने चाहरदीवारी से घेर दिया है और टिकट काउंटर स्थापित कर दिया है। इस अवसर पर प्रखंड विकास पदाधिकारी अमित कुमार, अंचलाधिकारी विजय कुमार गुप्ता,इंस्पेक्टर अमेरिका राम, थानाध्यक्ष अरविंद राय,एस आई पंकज किशोर,ज्योति कुमारी,उपेन्द्र तिवारी सहित करणी सेना के प्रदेश सचिव बिहार धीरज सिंह अपने 500 करणी सैनिक के साथ भगवान के शोभा यात्रा में हाथ में पीला झंडा लेकर चल रहे थे। इसके आलावे व्यवसाई संघ अध्यक्ष राजीव कुमार सिंह,बमबम सिंह सहित अन्य मौजूद थे।
कुमार चंदन,ब्यूरो चीफ,बांका।
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