रेवाडी 25 फरवरी। वनवासी कल्याण आश्रम रेवाडी द्वारा रविवार को रेवाड़ी स्थित सेंडपाइपर में एक बैठक का आयोजन किया गया। बैठक में जिला संयोजक संजय डाटा ने बताया कि वनवासी कल्याण आश्रम रेवाड़ी द्वारा आदिवासी वीरों के बलिदान और आजादी की लड़ाई में दिए गए योगदान को युवा पीढ़ी तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया गया है, जिन्होंने राष्ट्र की स्वाधीनता के लिए अपने प्राणों तक की चिंता नहीं की, हम लोगों में से कितने ऐसे हैं , जो इन नामों से परिचित नहीं हैं । खासकर हमारी युवा पीढ़ी तो इन नामों को जानती तक नहीं । जिला संयोजक संजय डाटा ने जानकारी देते हुए बताया कि वनवासी स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान की गाथा को लोगों खासकर युवा पीढ़ी को इनकी जीवनी के बारे में अवगत करवाना है। उन्होंने बताया कि वनवासी वीरों का रामायण और महाभारत जैसी भारतीय इतिहास की शौर्य मावाओं में जनजातियों का उल्लेखनीय योगदान रहा है। इन गावाओं में हम जनजातियों के नेताओं को भारतीय इतिहास के जायकों के रूप में पाते हैं। इतिहास में भी इतकी महत्वपूर्ण भूमिकाएं ध्यान में आती है। वे अपने क्षेत्र के एकछत्र शासक हुआ करते थे और बिकटवती क्षेत्रों के महान शासक अपने राज्य की वैचता स्थापित करने के लिए इन समुदायों के प्रतिनिधियों से मान्यता प्राप्त करते थे। उन्होंने बताया कि मुस्लिम आक्रमणों एवं अंग्रेजी शासन के अत्याचारों का भी इन समुदायों ने यशा संभव मोर्चा लिया, बलिदान हुए, आत्याचार सहे तथा देश की आजादी के लिए जूझते रहे। विशेषकर अंग्रेजों द्वारा बनाये गए जंगल काजूनों के कारण वे विक्ट परिस्थिति में आ गये एवं आर्थिक मापदण्डों में बाजी समाज से पिछड़ गये। यद्यपि उनके वनक्षेत्रों में खनिज संपदा की प्रचुरता थी, इनके शोषण के लिए अनेक व्यवसायी व सरकार भी इन क्षेत्रों में पहुंचे तो इन्हें अपनी भूमि, अपने घरों से विस्थापित होना पड़ा। पहले से ही दूरस्थ बीहड़ में रहने के कारण विकास से वंचित थे, ऊपर से विस्थापन इनकी घोर विडम्बना बनी। ऐसे गौरवशाली अतीत से भूषित समाज विपन्नता से घिरा तो अनेकानेक राष्ट्रविरोधी ताकतें सेवा के छद्म आवरण के पीछे अपने निहित स्वार्थ सिद्ध करती रही। अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम वर्तमान में जनजातीय समाज के बीच "तू-मैं एक रक्त" के भाव को लेकर कार्य करने वाली भारत की सबसे बड़ी स्वयंसेवी संस्था है। 1952 में जशपुर में स्व. बालासाहब देशपाण्डे के अवक प्रयासों से व्यापित यह संस्था आज नेपाल से लेकर अण्डमान तक पूरे देश के सभी राज्यों में कार्यरत्त है जो पूरे देश में 21000 सेवा प्रकल्प चलाकर 2 करोड़ वनवासी बन्धुओं को बिना सरकारी सहयोग के लाभान्वित कर रही है। वनांचल वासियों का धर्म, संस्कृति, परम्पराएं, नृत्य-गायन, वेश-भूषा, भाषा सबका संरक्षण हो, उनका शैडणिक, सामाजिक एवं आर्थिक विकास हो, समाज का स्व-नेतृत्व विकसित होकर भारत के उत्थान में सक्रिय भूमिका निभाने की क्षमता विकसित हो, यही इसका परम पावन उद्देश्य है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु विविध आयामों में 1400 पूर्णकालीन जीवनवर्ती कार्यकर्ता अहर्निश कार्यरत है। इतिहास के पन्नों से लगभग माराध ऐसे अनेकानेक जनजाति स्वतंत्रता सेनानियों, व्याभिमान रक्षण हेतु मर-मिटने वाले शूरवीरों, समाज जागरण के लिए वन-वन घूमते, भक्ति की अलख जगाते संतों को सामने लाने का महत्वपूर्ण कार्य भी कल्याण आश्रम सत्त कर रहा है। आजादी के अमृत महोत्सव में जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों पर रिसर्च करके 'जनजाति गौरव' पुस्तक इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कलाकेन्द्र, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित करताळी गई एवं भारत के अनेकों महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में संगोष्ठियों हुई जिसमें लगभग 1 लाख लोगों तक यह विषय पहुंचा। कल्याण आश्रम का एक प्रमुख आयाम है छात्रावास । वनांचल में बिखरी प्रतिभागों को खोज कर उनमें छिपी संभावनाओं को अभिव्यक्त होने का अवसर देना और श्रेष्ठ नागरिक के रूप में भावी भारत के निर्माण में अपनी सकारात्मक भूमिका निभा सके यही उद्देश्य है। वर्तमान में 189 बालक छात्रावास तथा 51 बालिका छात्रावास पूरे देश में संचालित है, जिनमें 6565 बालक एवं 2263 बालिकाएं अध्ययनरत है। इन छात्रावासों में रहकर कई जनजाति बालक डॉक्टर-इन्जीनीयर, कलेक्टर बनकर उच्च पद पर कार्यरत है।
बालक रोहन इसरो द्वारा प्रायोजित चन्द्रयान-2 प्रक्षेपण योजना में वैज्ञानिक के रूप में जुड़ा हुआ है। हरियाणा में सेवा कार्य हरियाणा में दो छात्रावास चलाये जा रहे है जिसमें भिवानी में कक्षा 12 वीं तक पूर्वोत्तर राज्यों से आकर 50 छात्र शिक्षा व संस्कार ग्रहण कर रहे हैं तथा महाविद्यालय शिक्षा हेतु फरीदाबाद में 40 छात्रओं की निःशुल्क व्यवस्था है। अब तक लगभग 400 छात्र शिक्षा व संस्कार ग्रहण करके अपने-अपने प्रदेशों में जाकर सामाजिक जीवन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इसके साथ शीतला माता मंदिर गुरूणाम व माता मजला देवी, पंचकुला से 30 से 35 हजार साड़ियाँ प्राप्त कर देश के विभिन्न वनवासी क्षेत्रों में आवश्यकतानुसार निःशुल्क वितरण हेतु भेजी जाती है। इस अवसर पर संजय डाटा, अध्यक्ष हवा सिंह, उपाध्यक्ष, अभिषेक गुप्ता, उपाध्यक्ष अनिल गंजू, महामंत्री, राजेश अग्रवाल तथा आदित्य डाटा आदि मौजूद रहे।
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