ब्यूरो रिपोर्ट ग्राम समाचार बांका। देश के बेरोजगार युवाओं के लिए बिहार एक हब बन गया है। शिक्षा विभाग सहित अन्य विभागों में रिकार्ड तोड़ वैकेंसी निकाली जा रही है। बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा अभी-अभी सूबे के प्राथमिक विद्यालयों के लिए प्रधान शिक्षक के कुल 40287 पद और उच्च माध्यमिक विद्यालयों में प्रधानाध्यापक के लिए कुल 6061 पद यानि दोनों तरह के विद्यालयों के लिए कुल 46308 पद के लिए विज्ञापन निकालें गये है। वैसे शिक्षक जो अपने सेवाकाल में विद्यालय प्रभारी बनने का कभी अवसर प्राप्त नहीं हुआ , वैसे शिक्षकों में स्थाई रूप से प्रधानाध्यापक बनने की लालसा देखी जा रही है। वहीं दूसरी तरफ वैसे शिक्षक भी है जो विद्यालय में प्रभारी रह चुके हैं, प्रधान शिक्षक अथवा प्रधानाध्यापक का फॉर्म भरना नहीं चाह रहे हैं। एक ताजा सर्वे के अनुसार कुछ ऐसे भी नवोदित प्रधानाध्यापक/ प्रधानाध्यापिका है जो टीआरई - 3 में शिक्षक बनने के लिए फॉर्म भर चुकें हैं। ऐसी स्थिति में पड़ताल करना लाज़मी है। आज किसी से छुपी हुई बात नहीं है। एक प्रधानाध्यापक के रूप में उन्हें जिल्लत भरी जिंदगी से नित जुझना पड़ रहा है। प्रातः आठ बजे विद्यालय के लिए घर से निकलना पड़ता है। प्रातः
नौ बजे के पूर्व विद्यालय कैम्पस प्रवेश करना जरूरी होता है। थोड़ा विलंब होने पर टोला सेवक का खड़ी - खोटी सुननी पड़ती है। विद्यालय में तरह - तरह के शिक्षकों के अंतर्द्वंदों को भी प्रधानाध्यापक को झेलनी पड़ती है। दिन में चार बार जॉच रिपोर्ट देनी पड़ती है। शैक्षिक प्रबंधन के अंतर्गत शिक्षकों को ठेलकर क्लास रुम तक भेजनी पड़ती है। एक दिन छोड़कर दूसरे दिन अभिभावकों और छात्राओं का विद्यालयों में तांडव होना एक दिनचर्या बन गई है। शाम पॉंच से छः बजे तक सीआरसी में वीसी में शामिल होना। जिला मुख्यालय में रात आठ बजे से वीसी में शामिल होना । रात बारह बजे तक अपने घर की वापसी करना। ऐसी कर्तव्यनिष्ठा में अपने घर - परिवार के सदस्यों का सुध कोई कैसे ले सकता है? यह एक यक्ष प्रश्न है? आज की तिथि में प्रायः प्रधानाध्यापक विभागीय तनाव से मुक्त नहीं है। शिक्षाविदों ने स्पष्ट कहा है कि,"प्रधानाध्यापक विद्यालय का कैप्टन होता है ।" कैप्टन यदि स्वस्थ्य नहीं होगा तो पूरा विद्यालय परिवार को बिमार होने से कोई रोक नहीं सकता। यहीं वजह है कि आज युवा शिक्षक प्रधानाध्यापक बनना नहीं चाहते हैं। यहीं वजह है कि आज नव नियुक्त प्रधानाध्यापक पुनः शिक्षक बनने के लिए बीपीएससी की परीक्षा में बैठने जा रहे हैं। विभाग को चाहिए कि जमीनी अध्ययन कर शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाये।
कुमार चंदन,ब्यूरो चीफ,बांका।
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें