ग्राम समाचार, ब्यूरो रिपोर्ट (गोड्डा)। पंचायत राज में महिला जनप्रतिनिधियों के पद पर उनके पति का कब्जा एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। चाहे वह महिला जिला परिषद हो, महिला मुखिया हो, महिला समिति हो या महिला वार्ड सदस्य हो, अधिकांश मामलों में वास्तविक कार्यभार उनके पति ही संभालते हैं। सरकार ने महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए आरक्षण प्रदान किया है ताकि वे समाज के विकास में सक्रिय भूमिका निभा सकें, लेकिन यह दावा खोखला साबित हो रहा है।
सरकारी कामकाज, ग्राम सभा या पंचायत सभा में महिला मुखिया के पति ही प्रमुख भूमिका निभाते हैं। वे मुखिया पद का दुरुपयोग करते हुए जनकल्याणकारी या विकास कार्यों को अपने अनुसार निर्धारित करते हैं। गोड्डा जिले के बोआरीजोर, मेहरमा, ठाकुरगंगटी, सुदरपाहडी क्षेत्रों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां ग्रामीणों ने जिला उपायुक्त तक लिखित शिकायतें भेजी हैं कि मुखिया पति या उप मुखिया पति के मनमानी के कारण पंचायत क्षेत्र के लोग सरकारी लाभ नहीं ले पा रहे हैं।
कई जगहों पर महिला मुखिया चुनाव जीतने के बाद गांव में दिखाई भी नहीं देतीं और सारा कामकाज मुखिया पति ही संभालते हैं, जिससे सरकारी तंत्र का दुरुपयोग होता है और महिला सशक्तिकरण का उद्देश्य विफल होता है। पंचायत राज को इस उद्देश्य से लागू किया गया था कि गांव का विकास गांव में ही हो और लोग पंचायत तंत्र से जुड़कर ग्रामीण स्तर पर विकास कर सकें, लेकिन यह उद्देश्य अधूरा रह जाता है।
इस गंभीर समस्या का समाधान निकालना आवश्यक है ताकि महिला सशक्तिकरण को सही मायने में बढ़ावा मिल सके। जिला उपायुक्त और पंचायत राज विभाग को इस पर कड़ा संज्ञान लेना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि महिला जनप्रतिनिधियों को उनका वास्तविक अधिकार और सम्मान मिले। ऐसा करने से ही ग्रामीण स्तर पर सच्चे विकास की उम्मीद की जा सकती है। सरकार और संबंधित अधिकारियों को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए, ताकि पंचायत राज के माध्यम से ग्रामीण स्तर पर विकास और महिला सशक्तिकरण को सही दिशा में ले जाया जा सके।
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