धनंजय सोरेन का झामुमो से टिकट पाकर पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ना, उनके करियर का महत्वपूर्ण क्षण है। उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के समर्थन में साहिबगंज में नामांकन किया, जो बताता है कि पार्टी का नेतृत्व उन पर कितना विश्वास करता है। दूसरी ओर, लोबिन हेंम्ब्रम ने अपनी पुरानी पार्टी झामुमो से असंतोष के चलते बीजेपी का दामन थाम लिया है। लोबिन जो बोरियो से पांच बार विधायक रह चुके हैं, लोबिन का बीजेपी में शामिल होना और एक अनुभवी प्रत्याशी के रूप में चुनाव में उतरना इस क्षेत्र में नई राजनीतिक गहमागहमी को जन्म दे रहा है।
बोरियो विधानसभा में इस बार का चुनावी संघर्ष झारखंड की राजनीति के लिए एक अहम मोड़ पर है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी धनंजय सोरेन और भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार लोबिन हेंम्ब्रम ने अपने-अपने दलों से नामांकन कर दिया है, जिससे क्षेत्र का राजनीतिक तापमान बढ़ गया है। एक ओर धनंजय सोरेन, जो मंडरो प्रखंड से जिला परिषद सदस्य के रूप में अपनी पहली विधानसभा चुनावी पारी की शुरुआत कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर, लोबिन हेंम्ब्रम, जो पांच बार विधायक रह चुके हैं और इस बार झामुमो छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है।
धनंजय सोरेन को झामुमो का मजबूत समर्थन प्राप्त है, और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की उपस्थिति में उनका नामांकन हुआ, बोरियो में जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने जनता से झामुमो के विकास कार्यों पर विश्वास जताने की अपील की। वहीं, लोबिन हेंम्ब्रम की बीजेपी में एंट्री, जिन्होंने पहले झामुमो से चार बार और एक बार निर्दलीय चुनाव जीतकर विधायक बने थे, क्षेत्र की जनता के लिए नए राजनीतिक समीकरण पेश कर रही है।
वहीं, दूसरी ओर लोबिन हेंम्ब्रम का भाजपा में शामिल होना राजनीतिक हलचल का कारण बना है। पांच बार विधायक रह चुके लोबिन हेंम्ब्रम ने झामुमो से बगावत करते हुए भाजपा का दामन थाम लिया। लोकसभा चुनाव में निर्दलीय चुनाव लड़ने के बाद झामुमो पार्टी से विधायकी सदस्यता समाप्त कर दी गई। झामुमो से असंतोष जताते हुए भाजपा की टिकट पर बोरियो विधानसभा से मैदान में उतरना उनके राजनीतिक करियर का बड़ा कदम है। लोबिन का यह कदम क्षेत्र में एक अलग धारणा उत्पन्न कर सकता है कि क्या वह व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के चलते झामुमो से अलग हुए हैं, या जनता के प्रति उनकी वचनबद्धता उन्हें दल बदलने पर मजबूर किया है?
लोबिन हेंम्ब्रम का झामुमो से अलग होना और बीजेपी में जाना केवल व्यक्तिगत फैसला नहीं, बल्कि उन मुद्दों पर असंतोष की झलक है, जो झामुमो के पारंपरिक वोटरों के सामने एक सवाल खड़ा करते हैं। बोरियो की जनता अब यह देख रही है कि क्या विकास के मुद्दे के नाम पर दल बदल राजनीति का ही खेल चल रहा है, या वाकई कोई बदलाव आएगा?
झारखंड के इस चुनावी महापर्व में ऐसे सवाल जनता के लिए अहम हो जाते हैं। दल बदलने का यह सिलसिला लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करने की ओर संकेत देता है। बोरियो विधानसभा में वोटरों के पास अब विकल्प है कि वे उन उम्मीदवारों को चुनें, जो उनके वास्तविक मुद्दों - जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और बुनियादी विकास के प्रति प्रतिबद्ध हैं।
बोरियो विधानसभा सीट पर चुनावी माहौल केवल राजनीतिक पार्टियों की जीत-हार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह क्षेत्र के विकास, रोजगार और शिक्षा जैसे वास्तविक मुद्दों को भी केंद्र में लाता है। दल-बदल की इस दौड़ में अक्सर नेताओं की प्राथमिकता जनता के मुद्दों से भटकती नजर आती है। यहाँ सवाल यह है कि क्या बोरियो के लोग अपने मुद्दों पर चर्चा करने वाले नेता को चुन पाएंगे या फिर यह चुनावी संघर्ष सत्ता की रस्साकशी का हिस्सा बनकर रह जाएगा?
इस बार के चुनाव में बोरियो विधानसभा का नतीजा जनता के निर्णय की शक्ति को प्रदर्शित करेगा। 20 नवंबर को होने वाले मतदान में जनता अपने वोट से अपना निर्णय देगी, और 23 नवंबर को इस परिणाम से यह स्पष्ट होगा कि बोरियो का ताज किसके सिर सजेगा।
- ग्राम समाचार ब्यूरो रिपोर्ट, साहिबगंज।
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें