ग्राम समाचार शिकारपुरा(दुमका)। लोकतांत्रिक शासन ब्यवस्था के चार स्तंभों में से एक स्तंभ पत्रकारों पर आएं दिन हो रहे जानलेवा हमले व फर्जी मुकदमों को लेकर दुमका लोकसभा क्षेत्र के सांसद नलिन सोरेन शुरू से ही मुखर होकर आवाज उठाते रहे हैं। उन्होंने विधायक रहते भी पत्रकार सुरक्षा को लेकर राज्य सरकार से बात कर मामले में ठोस कदम उठाने का आग्रह किया था। गुरुवार को शिकारीपाड़ा पहुंचे सांसद नलिन सोरेन ने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर चिंता जाहिर करते हुए मामले में ठोस कदम उठाने का आश्वासन दिया।
पत्रकार सुरक्षा को लेकर पत्रकारों द्वारा पूछे गए सवाल पर दुमका सांसद नलिन सोरेन ने कहा कि झारखंड के साथ-साथ पूरे भारत में पत्रकारों पर हो रहे हमले एवं पत्रकारों को प्रताड़ित करने के उद्देश्य से पूर्व एवं वर्तमान में दर्ज हो रहे फर्जी मामलों पर वे राज्य सरकार से पहले भी बात कर चुके हैं और आगे भी करेंगे। सांसद नलिन सोरेन ने कहा कि मैंने पूर्व में भी राज्य सरकार से इस पर बात की थी और वर्तमान में भी करूंगा। उन्होंने कहा कि पत्रकार सुरक्षा को लेकर मैं संसद में भी आवाज उठाऊंगा।
उन्होंने राज्य सरकार से अनुरोध किया है कि पत्रकारों को सुरक्षा प्रदान की जाए ताकि वे स्वतंत्र रूप से निर्भीक होकर जनता की समस्याओं को उजागर कर सकें। कहा कि पत्रकारों को कोई प्रताड़ित नहीं करें, इसके लिए पत्रकारों को सुरक्षा दिलाने के लिए मैं आवाज उठाऊंगा, ताकि पत्रकार अपना कार्य कर कुशलता पूर्वक अपने घर पहुंचे।
दुमका सांसद नलिन सोरेन द्वारा पत्रकार सुरक्षा पर जोर देना कई दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है। झारखंड में महागठबंधन की सरकार और "हेमंत है तो हिम्मत है" जैसे स्लोगन के बीच, यह सवाल उठता है कि सांसद नलिन सोरेन का यह कदम चुनावी एजेंडा है या वास्तव में पत्रकारों की सुरक्षा और न्याय की दिशा में एक गंभीर प्रयास है।
नलिन सोरेन, जो झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) से सांसद हैं, ने पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर लंबे समय से आवाज उठाई है। उन्होंने विधायक रहते हुए भी राज्य सरकार से इस मुद्दे पर ठोस कदम उठाने की मांग की थी। वर्तमान में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, और ऐसे में यह कदम उठाना राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हो सकता है।
सांसद नलिन सोरेन का यह कहना कि वे संसद में भी पत्रकार सुरक्षा का मुद्दा उठाएंगे, यह इंगित करता है कि वे इस मुद्दे को गंभीरता से ले रहे हैं। हालांकि, चुनाव के निकट होने के कारण यह कहना मुश्किल है कि यह कदम पूरी तरह से पत्रकारों के न्याय और सुरक्षा के लिए उठाया जा रहा है या इसमें चुनावी रणनीति भी शामिल है।
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