Boarijor News: बोआरीजोर प्रखंड के आदिवासी ग्रामीणों ने जमीन खरीद-बिक्री पर जताया विरोध


ग्राम समाचार बोआरीज़ोर(गोड्डा)। बोआरीजोर प्रखंड के मेघी पंचायत के कुल्हुवा गांव में आदिवासी ग्रामीणों ने जमीन की खरीद-बिक्री पर सख्त आपत्ति जताई है। गांव के आदिवासी लोगों ने ग्राम सभा आयोजित कर स्पष्ट किया कि वे अपने गांव में किसी भी आदिवासी को जमीन खरीदने या बेचने की अनुमति नहीं देंगे।

इस बैठक की अध्यक्षता कुल्हुवा गांव के ग्राम पराणीक बुधराम हांसदा ने की, जिसमें गांव के सभी लोग उपस्थित थे। बैठक में चर्चा की गई कि झारखंड, विशेषकर संथाल परगना क्षेत्र में, जमीन की खरीद-बिक्री के लिए कड़े केंद्र कानून हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए ग्रामीणों ने फैसला लिया और सभी को सूचित किया कि उनके गांव में जमीन बेचने का कोई आधार नहीं है।

बैठक में मौजूद सामाजिक कार्यकर्ता बाबूलाल मरांडी ने बताया कि 1855 के हुल विद्रोह के बाद कई आदिवासी शहीद हुए थे और 1947 में एसपीटी एक्ट लागू किया गया था, जो आदिवासियों की जमीन की सुरक्षा के लिए एक विशेष कानून है। पांचवीं अनुसूचित क्षेत्र में एसपीटी और सीएनटी एक्ट के तहत जमीन की खरीद-बिक्री पर कानूनी रोक है, फिर भी कुछ आदिवासी लोग इस कानून का उल्लंघन कर गैर-आदिवासियों को जमीन बेच रहे हैं।

बैठक में मौजूद बुद्धिजीवी लोगों ने एक विशेष चर्चा करते हुए पांचवी अनुसूची क्षेत्र के रूढी व्यवस्था का जिक्र किया और जो कानूनी अधिकार मिले उन कानून का पारदर्शी से चर्चा किया गया। संविधान के अनुच्छेद 13 के रूढीप्रथा क्षेत्र में जमीनों का क्रय-विक्रय और हस्तांतरण करने की इजाजत नहीं देती है। संविधान के अनुच्छेद 13(3)"क" का जिक्र करते हुए स्वशासन और प्रशासन एवं नियंत्रण का संवैधानिक उपबंध है। वहीं सुप्रीम कोर्ट जजमेंट पर चर्चा करते हुए 24 अप्रैल 1973 में केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय की 13 न्यायाधीशों की पीठ ने अपने संवैधानिक रुख में संशोधन करते हुए कहा कि संविधान संशोधन के अधिकार पर एकमात्र प्रतिबंध यह है कि इसके माध्यम से संविधान के मूल ढांचे को क्षति नहीं पहुंचनी चाहिए।

पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में आदिवासियों की बहुल संख्या है और उनकी सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार ने सीएनटी और एसपीटी एक्ट जैसे मजबूत कानून बनाए हैं। इन कानूनों का उद्देश्य आदिवासियों की पहचान, अस्तित्व और संस्कृति को संरक्षित करना है। आदिवासियों के पास जमीन नहीं रही तो उनकी पहचान और अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।

कई राजनेता सीएनटी और एसपीटी कानून का हवाला देकर जमीन की सुरक्षा की बात करते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर इन कानूनों का सही तरीके से पालन नहीं हो रहा है। आदिवासियों की जमीन पर सरकार इस तरह दान पत्र के नाम पर जमीन खरीद बिक्री के लिए खुला छूट दिया है। अगर सरकार आदिवासियों की सुरक्षा को देखते हुए जल्द ही सख्त कदम नहीं उठाती है, तो यह आदिवासियों की जमीन को बेचने की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा हो सकता है। बैठक में नारायण हांसदा, राजेंद्र सोरेन, जीतलाल किस्कू, तलू किस्कू, लखीराम सोरेन, ताला सोरेन, दुर्गा हांसदा, बबलू किस्कू, धूम टुडू, अर्चना हांसदा, अमित हांसदा इत्यादि ग्रामीण मौजूद रहे।
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Editor - विलियम मरांड़ी। 9905461511

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- राजीव कुमार (Editor-in-Chief)

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