ग्राम समाचार, बोआरीज़ोर (गोड्डा)। मांझी परगान सरकार ने शुक्रवार को बोआरीजोर प्रखंड विकास पदाधिकारी (बीडीओ) को एक ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में बताया गया कि दामिन-ई-कोह संथाल परगना क्षेत्र में बिना ग्राम सभा की अनुमति के आदिवासियों की जमीन पर गैर आदिवासियों के नाम पर सरकारी योजनाएं जैसे अबुआ आवास, प्रधानमंत्री आवास, गाय शेड, बकरी शेड आदि असंवैधानिक रूप से बनाई जा रही हैं।
ज्ञापन में सुप्रीम कोर्ट के 18 अप्रैल 2013 के वेदांता जजमेंट का हवाला देते हुए बताया गया कि सर्वोच्च अदालत के अनुसार, ग्राम सभा सर्वोच्च मान्यता रखती है। इसके अतिरिक्त, 21 नवंबर 2003 के अमरेंद्र प्रताप सिंह बनाम तेज बहादुर प्रजापति मामले का हवाला देकर कहा गया कि आदिवासियों की जमीन गैर-आदिवासियों को हस्तांतरित नहीं की जा सकती। मांझी परगान सरकार ने न्यायिक कानून और प्रथागत प्रथाओं का हवाला देते हुए मांग की है कि प्रथागत प्रथा क्षेत्रों में आदिवासियों की जमीन पर बन रही सरकारी योजनाओं को तुरंत रोका जाए।
मांझी परगान सरकार ने सार्वजनिक व सामुदायिक रूप से अनुच्छेद 31(क) के तहत सिमडा डाक बंगला में एक बैठक आयोजित की। इस बैठक में निर्णय लिया गया कि मनरेगा के तहत बन रही सरकारी योजनाओं के आवंटन पर रोक लगाने के लिए बीडीओ को आवेदन सौंपा जाए। इसी क्रम में शुक्रवार को मांझी परगान सरकार के नेतृत्व में आवेदन सौंपा गया।
ज्ञापन की प्रतिलिपि महामहिम राष्ट्रपति महोदय नई दिल्ली, माननीय राज्यपाल महोदय रांची, जिला कलेक्टर महोदय गोड्डा, प्रखंड विकास पदाधिकारी बोआरीजोर, और प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी बोआरीजोर को भी भेजी गई। इस मौके पर बाबूलाल मरांडी, गोविंद हेम्ब्रम, बिकास बास्की, मेघराय मरांडी, विमल चौडे, विनोद मरांडी, सुरेन्द्र मरांडी, शिबलाल सोरेन, पूर्व प्रमुख चंदर हांसदा, पूर्व मुखिया रमेश सोरेन, प्रकाश सोरेन और अन्य ग्राम प्रधान उपस्थित थे।
सरकारी योजनाओं के नाम पर आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों का हनन
संथाल परगना के आदिवासी समुदाय द्वारा सरकारी योजनाओं के खिलाफ विरोध उचित और आवश्यक है। सरकार द्वारा आदिवासियों की जमीन पर बिना ग्राम सभा की अनुमति के योजनाओं का क्रियान्वयन संविधान के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों ने स्पष्ट किया है कि ग्राम सभा की अनुमति के बिना कोई भी योजना लागू नहीं की जा सकती।
यह देखना चिंताजनक है कि संविधान के बावजूद, आदिवासियों की जमीन पर अवैध रूप से सरकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं। यह न केवल आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों का हनन है, बल्कि उनके पारंपरिक और सांस्कृतिक जीवन पर भी आघात है। मांझी परगान सरकार का यह कदम स्वागत योग्य है, जो आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
सरकार को चाहिए कि वह इस मामले को गंभीरता से ले और सुनिश्चित करे कि आदिवासियों की जमीन पर बिना उनकी सहमति के कोई भी योजना न बनाई जाए। संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए, जिससे सभी समुदायों का विश्वास बहाल हो सके। आदिवासी समुदाय के हितों को संरक्षित करना और उन्हें उनका अधिकार दिलाना एक न्यायपूर्ण और संवैधानिक समाज का प्रतीक है।
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