स्वच्छ भारत मिशन हरियाणा सरकार एवं "ग्रीन हरियाणा - क्लीन हरियाणा" मिशन के तत्वाधान में 19वीं सदी के नवजागरण के पुरोधा महान समाज सुधारक स्वामी दयानंद सरस्वती एवं शुद्धि आंदोलन के प्रणेता स्वामी श्रद्धानंद की 169 वीं जयंती पर स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित विश्व की प्रथम गौशाला नारनौल रोड रेवाड़ी के प्रांगण में उनके द्वारा लिखित सत्यार्थ प्रकाश नामक ग्रंथ की रचना एवं स्वराज का नारा आज भी प्रासंगिक है"विषय पर संगोष्ठी का आयोजन दीप जलाकर, पुष्पांजलि और गौ सेवा के साथ किया गया।संगोष्ठी की मुख्य वक्ता सामाजिक कार्यकर्ता प्रोफेसर डॉ. जया शर्मा ने कहा स्वामी दयानंद द्वारा देश की आजादी में दिया गया महत्वपूर्ण योगदान व सत्यार्थ प्रकाश की रचना एवं स्वराज का नारा आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने कहा स्वामी दयानंद सरस्वती का खेतड़ी नरेश से मिलने के दौरान नारनौल से होते हुए रेवाड़ी में 15 दिन का प्रवास हुआ और उन्होंने अपने हाथों से ही विश्व की प्रथम नारनौल रोड स्थित दयानंद गौशाला कों गौ सेवा के संकल्प के संदेश के साथ बनाई गई।उन्होंने कहा गुरु विरजानंद के आश्रम में रहकर संस्कृत व्याकरण, दर्शन और ग्रंथों के चिंतन-मनन के उपरांत स्वामी दयानंद द्वारा वेदों का प्रचार संपूर्ण भारतवर्ष में करने के लिए तत्पर हुए। वैदिक ज्ञान एवं शास्त्रों के अहर्निश अनुशीलन एवं व्याख्या करते रहने से विशिष्ट तपस्या, साधना, ईश्वर निष्ठा एवं ज्ञान गरिमा के स्वामी दयानंद साक्षात देदीप्यमान नक्षत्र थे।महर्षि दयानंद सत्य के पुजारी थे। सत्य की खोज के लिए वह वैभव और ममता संपन्न अपने गृह परिवार का 21 वर्ष की आयु में त्याग कर सन्यासी जीवन धारण किया। उन्होंने कहा स्वामी श्रद्धांनंद का देश और धर्म की रक्षा के लिए दिया गया बलिदान हमेशा देश के इतिहास में अजर अमर रहेगा। उन्होंने स्त्री शिक्षा विधवा विवाह को प्रोत्साहित किया। उन्होंने मानव सेवा सर्वोपरि का संदेश देते हुए सत्य के मार्ग पर चलते हुए देश सेवा का आवाहन किया।प्रोफेसर विजेंदर कुमार ने कहा स्वामी दयानंद सरस्वती के आदर्शों को जीवन में अपनाने की परम् आवश्यकता है।
कार्यक्रम के संयोजक सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. आर. के. जांगड़ा विश्वकर्मा सदस्य, स्वच्छ भारत मिशन हरियाणा सरकार एसटीएफ ने कहा भारत के महान राष्ट्रभक्ति सन्यासियों में स्वामी श्रद्धानंद अग्रणी थे। अंग्रेजों की दास्तान से छुटकारा और दलितों को अधिकार दिलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। समाज में वैदिक मूल्यों को पुनरुद्धार के लिए भी इन्होंने अहम योगदान दिया। उन्होंने शुद्धि आंदोलन के माध्यम से धर्म परिवर्तन कर चुके लोगों को पुन: हिंदू धर्म में वापसी करवाई। स्वामी दयानंद ने गुरु की प्रेरणा से ईश्वरीय ज्ञान एवं वेदों के प्रचार का दृढ़ संकल्प लिया। उनके द्वारा रचित सत्यार्थ प्रकाश नामक ग्रंथ और स्वराज का नारा आज भी प्रासंगिक है।महर्षि दयानंद साहस, शौर्य और धैर्य की प्रतिमूर्ति थे। अद्वितीय ब्रह्मचारी, युग दृष्टा, मनु महाराज की परम्परा के स्मृतिकार स्वामी दयानंद ने सर्वप्रथम वेदों के ज्ञान को प्रामाणिक ग्रंथों के रूप में स्थापित किया। अज्ञान और अविद्या रूपी अंधकार के उस युग में स्वामी दयानंद ने सर्वप्रथम उद्घोष किया कि, ‘‘वेद सब सत्य विद्याओं की पुस्तक है। वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है।’’वेद मंत्रों के प्रमाण देकर स्वामी जी ने समाज में दलितों, शोषितों और अछूतों को समानता का अधिकार देकर सामाजिक एकता,समरसता एवं सद्भावना की नींव रखी।विश्वभर में वैदिक संस्कृति का प्रचार करने हेतु इन्होंने सन् 1875 में मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की। स्वामी जी ने संपूर्ण विश्व को आर्य बनाने का नारा दिया। स्वामी दयानंद आधुनिक भारत में स्वराज्य, स्वदेशी, स्वभाषा और राष्ट्रीयता के प्रथम स्वप्नद्रष्टा थे।सर्वप्रथम 1873 में स्वामी दयानंद ने स्वराज का नारा दिया, बाद में बाल गंगाधर तिलक जी ने इसे आगे बढ़ाया। वह पहले महापुरुष थे,जिन्होंने यह नारा दिया था कि भारतवर्ष भारतीयों के लिए है। स्वामी दयानंद ऐसी शिक्षा पद्धति के प्रबल समर्थक थे जिसके माध्यम से युवाओं में शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक शक्तियों का समावेश हो। इसके लिए उन्होंने वैदिक गुरुकुल प्रणाली का प्रचार किया। स्वामी दयानंद की विचारधारा से प्रेरित होकर बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, राम प्रसाद बिस्मिल, श्यामजी कृष्ण वर्मा, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह जैसे हजारों युवाओं ने भारतवर्ष की स्वाधीनता हेतु अपना सर्वस्व बलिदान किया। स्वामी दयानंद तपोनिष्ठ निर्भीक सन्यासी थे।स्वामी दयानंद का व्यक्तित्व शांति, विनम्रता, करुणा, दया जैसे दैवी गुणों की खान था। अपने हत्यारे को भी रुपए तथा क्षमा का दान देना ऐसी करुणा और दया का उदाहरण विश्व में अन्यत्र मिलना दुर्लभ है। महर्षि दयानंद कुशल वक्ता, चिंतक,सिद्धांत निष्ठ,उदार विचारों के महापुरुष थे।डॉ.विश्वकर्मा ने भारतीय संस्कृति और संस्कारों की अनुपालन करते हुए गौ सेवा को जीवन में अपनाने की अपील के साथ आव्हान किया गया। कार्यक्रम में गौ सेवक शिक्षाविद विजेंद्र कुमार, दिनेश शर्मा, राजपाल यादव, सूरज यादव, कमल सिंह, राजेश शर्मा, भानु प्रताप सिंह, विकास कुमार, मनीष कुमार, देव शर्मा, राकेश कुमार, डॉ.ममता शर्मा, अनीता प्रजापति, शकुंतला जांगड़ा को अंग वस्त्र और पौधा भेंट कर सम्मानित किया गया।
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