Editorial : अमन साहू का एनकाउंटर: एक निर्णायक मोड़ या खोया हुआ अवसर?

राजीव कुमार

पराधी अमन साहू की 11 मार्च 2025 को झारखंड पुलिस की एंटी-टेररिस्ट स्क्वॉड (ATS) के साथ मुठभेड़ में मौत ने कानून व्यवस्था और न्याय को लेकर बहस छेड़ दी है। पुलिस इसे संगठित अपराध के खिलाफ एक बड़ी जीत बता रही है, लेकिन कई लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या वास्तव में न्याय हुआ या फिर अहम जानकारी हमेशा के लिए खो गई।

साहू, जिस पर हत्या, फिरौती और अपहरण सहित 100 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज थे, को हाल ही में छत्तीसगढ़ की रायपुर जेल से रांची लाया जा रहा था ताकि उससे कुछ महत्वपूर्ण मामलों में पूछताछ की जा सके। लेकिन पलामू जिले में उसके सहयोगियों ने पुलिस काफिले पर हमला कर दिया, जिसके बाद साहू ने कथित रूप से एक पुलिसकर्मी की राइफल छीन ली और जवाबी फायरिंग में मारा गया।

हालांकि पुलिस का दावा है कि यह मुठभेड़ अपरिहार्य थी, लेकिन कुछ आलोचकों, खासकर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन, ने इसकी परिस्थितियों पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने सीबीआई जांच की मांग करते हुए कहा कि साहू की मौत से अपराध और राजनीति के गठजोड़ से जुड़े कई राज दफन हो सकते हैं।

यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि यह एनकाउंटर न्याय की प्रक्रिया थी या फिर एक ऐसा अंत, जो कई बड़े खुलासों को रोकने के लिए किया गया? साहू का नेटवर्क सिर्फ अपराध तक सीमित नहीं था; उसकी गैंग कोयला और बिजनेस माफिया से भी जुड़ी हुई थी। यदि वह जीवित रहता, तो उसकी गवाही से कई बड़े नामों का पर्दाफाश हो सकता था।

भारत में बड़े अपराधियों के एनकाउंटर कोई नई बात नहीं हैं, और ये हमेशा विवाद का विषय बनते हैं। जहां कानून प्रवर्तन एजेंसियां इसे अपराध पर लगाम लगाने का तरीका मानती हैं, वहीं मानवाधिकार कार्यकर्ता इसे न्यायिक प्रक्रिया के खिलाफ बताते हैं। लोकतंत्र में हर आरोपी को निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार होता है, और अगर अपराधियों को बिना पूरी जांच के मार दिया जाता है, तो इससे बड़े आपराधिक नेटवर्क बच निकलते हैं।

झारखंड सरकार और पुलिस को पारदर्शिता बनाए रखनी चाहिए। अगर यह मुठभेड़ आत्मरक्षा में हुई थी, तो इसकी पूरी जांच होनी चाहिए ताकि जनता का विश्वास कायम रहे। लेकिन अगर इसके पीछे कोई और कारण थे, तो निष्पक्ष जांच जरूरी है।

अमन साहू की मौत झारखंड में संगठित अपराध के खिलाफ एक महत्वपूर्ण घटना है। लेकिन यह सच में जीत थी या अपराध के बड़े नेटवर्क को खत्म करने का एक खोया हुआ अवसर—यह सवाल अभी भी गहराई से सोचने की मांग करता है।

- राजीव कुमार, प्रधान संपादक, ग्राम समाचार।

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Editor - न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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