राजीव कुमार |
तमिलनाडु सरकार ने अपने बजट में रुपये के प्रतीक (₹) को बदलकर तमिल अक्षर 'ரூ' का प्रयोग करके एक ऐसा कदम उठाया है, जिसने देश भर में भाषा को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की सरकार का यह फैसला सिर्फ एक प्रतीक परिवर्तन नहीं है, बल्कि यह एक राजनीतिक और सांस्कृतिक वक्तव्य है, जो कई सवाल खड़े करता है।
यह समझना जरूरी है कि तमिलनाडु में भाषा का मुद्दा हमेशा से ही संवेदनशील रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) और त्रिभाषा फॉर्मूले को लेकर राज्य और केंद्र के बीच पहले से ही तनाव है। तमिलनाडु सरकार का यह कदम, इस तनाव को और बढ़ाने वाला है। सवाल यह है कि क्या यह कदम वास्तव में तमिल भाषा के प्रति प्रेम और सम्मान को दर्शाता है, या यह सिर्फ एक राजनीतिक चाल है?
इसमें कोई दो राय नहीं है कि हर राज्य को अपनी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने का अधिकार है। तमिल एक समृद्ध और प्राचीन भाषा है, और इसे संरक्षित करना अनिवार्य है। लेकिन, क्या राष्ट्रीय प्रतीक को बदलकर हम अपनी भाषा को सही मायने में सम्मान दे रहे हैं? क्या यह कदम केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग और संवाद को बाधित नहीं करेगा?
भाजपा नेताओं ने इस फैसले को "बेवकूफी" भरा बताया है, और यह भी सच है कि रुपये का प्रतीक एक तमिलियन, उदय कुमार द्वारा डिजाइन किया गया था। ऐसे में, यह सवाल उठता है कि क्या यह बदलाव वास्तव में तमिल गौरव को दर्शाता है, या यह सिर्फ एक राजनीतिक विरोध का तरीका है?
डीएमके नेताओं का कहना है कि यह कदम तमिल को प्राथमिकता देता है और गैरकानूनी नहीं है। उनका तर्क है कि राज्य की सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने के लिए तमिल को बढ़ावा देना आवश्यक है। यह तर्क अपनी जगह सही है, लेकिन हमें यह भी सोचना होगा कि क्या इस तरह के प्रतीकात्मक बदलावों से हम अपनी भाषा को सही मायने में आगे बढ़ा सकते हैं?
यह भी ध्यान देने योग्य है कि यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब देश में लोकसभा चुनाव नजदीक हैं। क्या यह कदम सिर्फ एक राजनीतिक चाल है, जिसका उद्देश्य मतदाताओं को आकर्षित करना है? क्या यह सिर्फ एक भावनात्मक मुद्दा है, जिसका इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है?
हमें यह भी सोचना होगा कि इस फैसले का दीर्घकालिक प्रभाव क्या होगा। क्या यह अन्य राज्यों को भी ऐसे ही कदम उठाने के लिए प्रेरित करेगा? क्या यह देश में भाषा के आधार पर विभाजन को और बढ़ाएगा?
हमें भाषा को राजनीति से ऊपर रखना होगा। हमें यह समझना होगा कि भाषा सिर्फ एक प्रतीक नहीं है, बल्कि यह हमारी पहचान और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। हमें अपनी भाषाओं को संरक्षित करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे, न कि सिर्फ प्रतीकात्मक बदलाव करने होंगे।
अंत में, हमें यह याद रखना होगा कि भारत एक विविधताओं से भरा देश है। हमें अपनी भाषाओं और संस्कृतियों का सम्मान करना चाहिए, लेकिन हमें एकता और सहयोग के महत्व को भी समझना होगा। हमें ऐसे कदम उठाने होंगे जो देश को मजबूत करें, न कि उसे विभाजित करें। तमिलनाडु सरकार को इस फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए और केंद्र सरकार के साथ मिलकर भाषा के मुद्दे पर संवाद करना चाहिए। हमें ऐसे समाधान खोजने होंगे जो सभी के लिए स्वीकार्य हों और जो देश की एकता और अखंडता को मजबूत करें।
लेखक - राजीव कुमार, सीईओ और प्रधान संपादक, ग्राम समाचार।
Editor - न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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- राजीव कुमार (Editor-in-Chief)
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