इलाहाबाद/नई दिल्ली: चार दशकों तक चली लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, आखिरकार एक यौन उत्पीड़न मामले में न्याय हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए साफ किया है कि बलात्कार के मामले में पीड़िता के निजी अंगों पर चोट के निशान होना जरूरी नहीं है। अदालत ने 1984 में एक ट्यूशन टीचर द्वारा अपनी छात्रा के यौन उत्पीड़न के मामले में यह फैसला सुनाया।
चार दशकों का लंबा इंतजार:
यह मामला मार्च 1984 का है, जब एक ट्यूशन टीचर ने अपनी नाबालिग छात्रा का यौन उत्पीड़न किया था। निचली अदालत ने 1986 में आरोपी को दोषी ठहराया, लेकिन आरोपी ने फैसले को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में अपील की। इस तरह, न्याय मिलने में पूरे 40 साल लग गए।
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला:
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि बलात्कार के मामले में पीड़िता के निजी अंगों पर चोट के निशान होना जरूरी नहीं है। अदालत ने आरोपी के इस तर्क को खारिज कर दिया कि पीड़िता के निजी अंगों पर चोट के निशान नहीं थे, इसलिए यह बलात्कार का मामला नहीं है। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की गवाही और अन्य सबूतों के आधार पर भी आरोपी को दोषी ठहराया जा सकता है।
पीड़िता की मां के चरित्र पर सवाल उठाने की कोशिश नाकाम:
आरोपी ने पीड़िता की मां के चरित्र पर सवाल उठाकर मामले को कमजोर करने की कोशिश की थी, लेकिन कोर्ट ने इसे भी खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि पीड़िता की मां के चरित्र पर सवाल उठाने से मामले की गंभीरता कम नहीं होती है।
न्याय में देरी पर सवाल:
निचली अदालत ने इस मामले में दो साल में फैसला सुना दिया था, लेकिन ऊपरी अदालतों में इसे पहुंचने में 38 साल लग गए। न्याय में देरी पर सवाल उठाते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में तेजी से सुनवाई होनी चाहिए।
पीड़िता को मिला न्याय:
इस फैसले से पीड़िता को 40 साल बाद न्याय मिला है। यह फैसला यौन उत्पीड़न पीड़ितों के लिए एक मिसाल है, जो न्याय के लिए सालों तक इंतजार करते हैं।
फैसले के मुख्य बिंदु:
- बलात्कार के मामले में पीड़िता के निजी अंगों पर चोट के निशान होना जरूरी नहीं है।
- पीड़िता की गवाही और अन्य सबूतों के आधार पर भी आरोपी को दोषी ठहराया जा सकता है।
- पीड़िता की मां के चरित्र पर सवाल उठाने से मामले की गंभीरता कम नहीं होती है।
- यौन उत्पीड़न के मामलों में तेजी से सुनवाई होनी चाहिए।
यह फैसला यौन उत्पीड़न पीड़ितों के लिए एक महत्वपूर्ण जीत है। यह उन्हें न्याय के लिए लड़ने की हिम्मत देता है, भले ही इसमें कितना भी समय लगे।
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